ʜᴇʟʟᴏ ɢᴜyꜱ
ᴩʟᴇᴀꜱᴇ ᴀɴꜱᴡᴇʀ ᴛʜᴇ ɢɪᴠᴇɴ qᴜᴇꜱᴛɪᴏɴ.
ʜɪɴᴅɪ
ᴄʟᴀꜱꜱ 10
ᴍᴀᴀᴛᴀ ᴋᴀ ᴀɴᴄʜᴀʟ
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जब बाबू जी रामायण का पाठ करते तब हम उनकी बगल में बैठे-बैठे आइने में अपना मुँह निहारा करते थे। जब वह हमारी ओर देखते तब हम कुछ लजाकर और मुसकराकर आइना नीचे रख देते थे। वह भी मुसकरा पड़ते थे।
पूजा-पाठ कर चुकने के बाद वह राम-राम लिखने लगते। अपनी एक ‘रामनामा बही’ पर हजार राम-नाम लिखकर वह उसे पाठ करने की पोथी के साथ बाँध्कर रख देते। फिरपाँच सौ बार कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर आटे की गोलियोंमें लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे।
उस समय भी हम उनके कंधे पर विराजमान रहते थे। जब वह गंगा में एक-एक आटे की गोलियाँ पेंफककर मछलियों को खिलाने लगते तब भी हम उनके कंधे पर ही बैठे-बैठे हँसा करते थे। जब वह मछलियों को चारा देकर घर की ओर लौटने लगते तब बीच रास्ते में झुके हुए पेड़ों की डालों पर हमें बिठाकर झूला झुलाते थे।