या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।
ज्यों- ज्यों बूडै स्याम रंग त्यों-तयों उज्जवल होय।।
Kya isme punerukti alankar ho skta hai?
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या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।
ज्यों- ज्यों बूडै स्याम रंग त्यों-तयों उज्जवल होय।।
इस दोहे में विरोधाभास अलंकार है |
इस दोहे में कृष्ण भक्ति और कृष्ण प्रेम के संदर्भ में है| कृष्ण के सांवले होने की धारणा भक्तों को अपनी और आकर्षित करती रही है ,तत्व की बात तो ये है कि कृष्ण की भक्ति करने वाले पुरुष भी स्वयं को गोपी भाव देखते रहे हैं।
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पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं।
मोहि राम राउरि आन दसरथसपथ सब साची कहौं॥
बरु तीर मारहुँ लखनु पै जब लगि न पाय पखारिहौं।
तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं
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