ये अपनी कृति में जीवन स्पंदन भरते हैं
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भरते कृति में जीवन स्पंदन नहीं प्रार्थना इससे प्रियतर ! सत्य-निष्ठ, जन-भू प्रेमी जब मानव जीवन के मंगल हित कर देते उत्सर्ग प्राण निज भू-रज को कर शोणित रंजित नहीं प्रार्थना इससे बढ़कर!
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