Hindi, asked by dastechnicaltution, 6 months ago

योग्यता के अनुसार से बना हुआ समस्त पद है​

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Answered by deepakjoshi14
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Answer:समास’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है– संक्षिप्त करना। सम्+आस् = ‘सम्’ का अर्थ है– अच्छी तरह पास एवं ‘आस्’ का अर्थ है– बैठना या मिलना। अर्थात् दो शब्दोँ को पास–पास मिलाना।

‘जब परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दोँ के बीच की विभक्ति हटाकर, उन्हेँ मिलाकर जब एक नया स्वतन्त्र शब्द बनाया जाता है, तब इस मेल को समास कहते हैँ।’

परस्पर मिले हुए शब्दोँ को समस्त–पद अर्थात् समास किया हुआ, या सामासिक शब्द कहते हैँ। जैसे– यथाशक्ति, त्रिभुवन, रामराज्य आदि।

समस्त पद के शब्दोँ (मिले हुए शब्दोँ) को अलग–अलग करने की प्रक्रिया को ‘समास–विग्रह’ कहते हैँ। जैसे– यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।

हिन्दी मेँ समास प्रायः नए शब्द–निर्माण हेतु प्रयोग मेँ लिए जाते हैँ। भाषा मेँ संक्षिप्तता, उत्कृष्टता, तीव्रता व गंभीरता लाने के लिए भी समास उपयोगी हैँ। समास प्रकरण संस्कृत साहित्य मेँ अति प्राचीन प्रतीत होता है। श्रीमद्भगवद्गीता मेँ भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है—“मैँ समासोँ मेँ द्वन्द्व समास मेँ हूँ।”

जिन दो मुख्य शब्दोँ के मेल से समास बनता है, उन शब्दोँ को खण्ड या अवयव या पद कहते हैँ। समस्त पद या सामासिक पद का विग्रह करने पर समस्त पद के दो पद बन जाते हैँ– पूर्व पद और उत्तर पद। जैसे– घनश्याम मेँ ‘घन’ पूर्व पद और ‘श्याम’ उत्तर पद है।

जिस खण्ड या पद पर अर्थ का मुख्य बल पड़ता है, उसे प्रधान पद कहते हैँ। जिस पद पर अर्थ का बल नहीँ पड़ता, उसे गौण पद कहते हैँ। इस आधार पर (संस्कृत की दृष्टि से) समास के चार भेद माने गए हैँ–

1. जिस समास मेँ पूर्व पद प्रधान होता है, वह—‘अव्ययीभाव समास’।

2. जिस समास मेँ उत्तर पद प्रधान होता है, वह—‘तत्पुरुष समास’।

3. जिस समास मेँ दोनोँ पद प्रधान होँ, वह—‘द्वन्द्व समास’ तथा

4. जिस समास मेँ दोनोँ पदोँ मेँ से कोई प्रधान न हो, वह—‘बहुब्रीहि समास’।

हिन्दी मेँ समास के छः भेद प्रचलित हैँ। जो निम्न प्रकार हैँ—

1. अव्ययीभाव समास

2. तत्पुरुष समास

3. द्वन्द्व समास

4. बहुब्रीहि समास

5. कर्मधारय समास

6. द्विगु समास।

अव्ययीभाव समास–

जिस समस्त पद मेँ पहला पद अव्यय होता है, अर्थात् अव्यय पद के साथ दूसरे पद, जो संज्ञा या कुछ भी हो सकता है, का समास किया जाता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैँ। प्रथम पद के साथ मिल जाने पर समस्त पद ही अव्यय बन जाता है। इन समस्त पदोँ का प्रयोग क्रियाविशेषण के समान होता है।

अव्यय शब्द वे हैँ जिन पर काल, वचन, पुरुष, लिँग आदि का कोई प्रभाव नहीँ पड़ता अर्थात् रूप परिवर्तन नहीँ होता। ये शब्द जहाँ भी प्रयुक्त किये जाते हैँ, वहाँ उसी रूप मेँ ही रहेँगे। जैसे– यथा, प्रति, आ, हर, बे, नि आदि।

पद के क्रिया विशेषण अव्यय की भाँति प्रयोग होने पर अव्ययीभाव समास की निम्नांकित स्थितियाँ बन सकती हैँ–

(1) अव्यय+अव्यय–ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ, इधर-उधर, आस-पास, जैसे-तैसे, यथा-शक्ति, यत्र-तत्र।

(2) अव्ययोँ की पुनरुक्ति– धीरे-धीरे, पास-पास, जैसे-जैसे।

(3) संज्ञा+संज्ञा– नगर-डगर, गाँव-शहर, घर-द्वार।

(4) संज्ञाओँ की पुनरुक्ति– दिन-दिन, रात-रात, घर-घर, गाँव-गाँव, वन-वन।

(5) संज्ञा+अव्यय– दिवसोपरान्त, क्रोध-वश।

(6) विशेषण संज्ञा– प्रतिदिवस, यथा अवसर।

(7) कृदन्त+कृदन्त– जाते-जाते, सोते-जागते।

(8) अव्यय+विशेषण– भरसक, यथासम्भव।

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