य) 'घोर गर्जनमय गगन' का क्या अर्थ है? इस गर्जन के मध्य किसका निर्भीक गान सुनाई पड़ता
है?
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रजना 2. घोर ध्वनि करने या होने की क्रिया या भाव 3. बादलों की गड़गड़ाहट 4. गुस्सा 5. युद्ध 6. फटकार ; भर्त्सना।
गर्जन 1- संज्ञा पुलिंग [संस्कृत] 1. भीषण ध्वनि । गरजना । गरज । गभीर नाद । यौगिक शब्द - गर्जन तर्जन = (1) तड़प । (2) डाँट डपट । 2. शोर । आवाज । कोलाहल [को कहते हैं] । 3. क्रोध । आवेश [को कहते हैं] । 4. संग्राम । रण । युद्ध (को कहते हैं) । 5. तिरस्कार । झिड़की । भर्त्सना [को कहते हैं] ।
गर्जन 2- संज्ञा पुलिंग [देश०] शाल की जाति का एक पेड़ । विशेष-इसके जंगल के जंगल हिंदुस्तान में ट्रावंकोर, मलाबार, कनारा, कोंकन, चटगाँव, बरमा, अंडमान आदि में पाए जाते हैं । इसके पेड़ पीले रंग के, सीधे और सौ सवा सौ हाथ ऊँचे होते हैं और इलकी डालियाँ बहुत दूर तक नहीं फैलतीं । इनके कई भैद हैं, जिनमें से कुछ सदाबहार भी होते हैं । इस पेड़ से एक प्रकार का निर्यास निकलता है जो कभी कभी इतना पतला होता है कि वह अलसी के तेल की तरह रँगाई के काम में लाया जाता है । बरमा में दो प्रकार के गर्जन होते हैं । एक तेलिया गर्जन जिसका निर्यास लाल रंग का होता है, और दूसरा सफेद गर्जन जिसका निर्यास सफेद रंग का होता है । इन दोनों के निर्यास पतले और अच्छे होते हैं । तेल निकालने की विधि यह है कि नवंबर से मई तक इसके पेड़ की जड़ में दो तीन गहरे चौकोर गड्ढे खोद दिए जाते हैं । फिर उनके किनारे किनारे आग जलाई जाती है, जिससे तेल सिमट सिमटकर गड्ढे में इकट्ठा होता जाता है और तिसरे चौथे दिन गड्ढा भर जाता है । जो तेल मिटटी पर बहकर जम जाता है, उसे खुरचकर पत्तियों में लपेट लेते और जंगलों में मोम*- बत्ती की तरह जलाते हैं । आसाम और बरमा का होलंग नामक सदाबहार वृक्ष भी इसी जाति का है, जिसका निर्यास बिरोजे की तरह का और सफेद होता है । इस जाति के कुछ वृक्षों का निर्यास अधिक गाढ़ा होता है और राल की तरह जलाने के काम में आता है । यह वृक्ष बीजों से उगता है और इसके फल तथा बीज शाल के फलों और बीचों की तरह होते हैं । इसकी लकड़ी बहुत मजबूत और प्रति घन फुट 25*-3० सेर भारी होती है और नाव तथा घर बनाने के काम में आती है ।
बादल का ज़ोर ज़ोरसे गरजना