Hindi, asked by neerajsinghrspl, 1 day ago

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसा ।। रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं। कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।​

Answers

Answered by nikithanayanaprakash
7

Answer:

रसखान

सवैये

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।

जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।

यहाँ पर रसखान ने ब्रज के प्रति अपनी श्रद्धा का वर्णन किया है। चाहे मनुष्य का शरीर हो या पशु का; हर हाल में ब्रज में ही निवास करने की उनकी इच्छा है। यदि मनुष्य हों तो गोकुल के ग्वालों के रूप में बसना चाहिए। यदि पशु हों तो नंद की गायों के साथ चरना चाहिए। यदि पत्थर हों तो उस गोवर्धन पहाड़ पर होना चाहिए जिसे कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। यदि पक्षी हों तो उन्हं यमुना नदी के किनार कदम्ब की डाल पर बसेरा करना पसंद हैं।

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