यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम्।
न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि।
एकपदेन उत्तरत-(एक पद में उत्तर दीजिए-)
1. कौ क्लेशं सहेते?
2. कथं मातापितरौ क्लेशं सहेते?
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१) मातापितरौ क्लेशं सहेते।
२) मातापितरौ सम्भवे नृणां क्लेशं सहेते।
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1. मातापितरौ
1. मातापितरौ2. सम्भवे नृणाम्
Explanation:
प्रणाम करने वाले मनुष्य की और हमेशा बड़े-बूढ़ों की सेवा करने वाले मनुष्य विद्या, यश और बल चारों (अपने-आप) बढ़ते हैं।
मनुष्य के जन्म के समय जो कष्ट माता-पिता सहते हैं, उस कष्ट का निस्तार सौ वर्षों में भी नहीं किया जा सकता। अर्थात् उसका ऋण सौ वर्षों में भी नहीं चुकाया जा सकता।
हमेशा उन दोनों का (माता-पिता का) और गुरु का सदा प्रिय (भला) करना चाहिए। उन तीनों के संतुष्ट होने पर हमारी सभी तपस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। अर्थात् हमें सभी तपस्याओं का फल मिल जाता है।
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