ये नरहरि चंचल मति मोरी।
कैसे भगति कसै मैं तोरा ।।
तू मोति देय , हौ तौति देखू, प्रीति परस्पर टीई ।
तू
मोति देखें , हो तोति न देखू , इति मति सव बुधि यो
सब घट अंतरि रममि निरंतरि , मैं देखत हूँ नही माना।
गुन सब तोर मोर शव औगन , क्रित उपकार न आना |
मैं त तौरि नॉरि अप्सना मो, कैसे करि नियतारा
कहै रैदास' कृरन करुणांम,
जल जगत अधारा ||
काय
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Y= -x-3
y=4x+2
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