यो रहीम सुख होत है, बढ़त देख निज गोत।
ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि, आँखिन को सुख होत ॥ 13 ।।Vyakhya Kijiye
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Raheem ji kehte hain ki, jis prakar se badi badi aankhon ko dekhkar hriday ko prasannata milti hai, usi prakar apne kul ko badhte dekhkar arthaat apne kul ki pratishtta badhte dekh humein sukh milta hai.
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यो रहीम सुख होत है, बढ़त देख निज गोत।
ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि, आँखिन को सुख होत ॥
रहीम जी इस दोहे में कहते है, जब मनुष्य अपने वंश को बढ़ते देखकर अपार हर्ष होता है। इस सुख का ऐसा होता है, जिस प्रकार बड़ी आंखें निहार कर आंखों को सुख मिलता है।
सरल शब्दों में अपने वंश खानदान की वृद्धि देखकर उसी तरह सुख का अनुभव होता है, युवती की सुन्दर आँखों को देखकर मनुष्य को आनन्द प्राप्त होता है।
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