या स्वत:ची छातली त्याच्या अंगातर
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मैं व्यथित पथिक तुम शीतल छाया तुम "ज्योतिर्मय", मैं मृण काया अर्पण तन मन यह जीवन धन, शिव रस मुझमें सघन समाया ।।
आगमनित स्वर्ग से गंग सम शीतल, चंचल, मन बज मृदंग अति व्याकुलता....! इस व्यथित मन
बंध जटापाश, शिव से संगम।।
अवलोकित मन, मानव दर्पण हुई तृप्त क्षुधा पा आलिंगन मुक्ति की अविरल धारा में, हुए शांत, व्यथित पथिक के मन।।
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