Biology, asked by rk2645716, 5 hours ago

(य) सहजीविता एवं परजीविता में अन्तर स्पष्ट कीजिए
(अ) प्लाज्मोडियम की विभिन्न प्रजातियों का वर्णन कीजिए
(ब) जैव उर्वरक मृदा की उर्वरता को किस प्रकार बढातें हैं।​

Answers

Answered by kishanprajapati32029
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Explanation:

1. सहजीविता Symbiosis-

जब दो पौधे अथवा जीवधारी साथ-साथ रहते हैं तथा एक-दूसरे को लाभ पहुंचाते हैं तो उन्हें सहजीवी तथा इस प्रकार के सम्बन्ध को सहजीवन कहते हैं। पौधों का यह गुण सहजीविता कहलाता है।

सहजीविता के उदाहरण है – लाइकेन तथा लैग्यूमिनेसी कुल के पौधों की जड़ों की ग्रन्थियों में पाये जाने वाले नाइट्रीकरण जीवाणु।

लाइकेन के शरीर का निर्माण शैवाल तथा कवक के द्वारा होता है।

नाइट्रीकरण जीवाणु भूमि की स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तित कर देते हैं। इसे पौधे जड़ों द्वारा खाद रूप में ग्रहण करते हैं। इसके बदले में पौधे इन जीवाणुओं को भोजन एवं रहने के लिये स्थान देते हैं। इस प्रकार इस सहजीविता का प्रभाव पौधों एवं वातावरण पर पड़ता है।

परजीविता Parasitism-

वातावरण में कवक, जीवाणु एवं विषाणु तथा कुछ उच्चवर्गीय आवृत्त बीजी पौधे जैसे- अमरबेल, लोरेन्थस, ओरोबैका, वेलेनोफोरा, रैफ्लेशिया आदि परजीवी के रूप में उगते हैं।

इनमें पर्णहरिम का अभाव होता है और ये सभी अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते हैं दूसरे पौधों से चूषकांगों द्वारा प्राप्त करते हैं। पौधों के इस गुण को परजीविता एवं ऐसे पौधों को परजीवी कहते हैं।

इन पौधों का पृथ्वी से कोई सम्बन्ध नहीं रहता है। जिन पौधों पर परजीवी उगते हैं और अपना भोजन लेते हैं उन्हें पोषित पौधे कहते हैं।

कुछ पौधे पूर्णरूप से परजीवी होते हैं, जैसे- अमरबेल तथा कुछ आंशिक परजीवी होते हैं जैसे- लोरेन्थस, विस्कम तथा चंदन।

कुछ तनों पर परजीवी होते हैं जिन्हें क्रमशः मूल परजीवी तथा स्तम्भ परजीवी कहते है।

पूर्ण मूल परजीवी – औरोबैंकी

आंशिक मूल परजीवी – चंदन (Santalum album)

पूर्ण स्तम्भ परजीवी – अमरबेल (Cuscuta)

आंशिक स्तम्भ परजीवी – लोरेन्थस (Loranthus) तथा विस्कम (Vixcum)।

(अ)। प्लास्मोडियम मलेरिये एक प्रकार का प्रोटोज़ोआ है, जो बेनाइन मलेरिया के लिये जिम्मेदार है। यह पूरे संसार में पाया जाता है। यह मलेरिया उतना खतरनाक नहीं है जितना प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (Plasmodium falciparum) तथा प्लास्मोडियम विवैक्स (Plasmodium vivax) के द्वारा पैदा किया मलेरिया होता है। मलेरिया के इस परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है।

प्लास्मोडियम में बहुविखण्डन प्रकार का जनन पाया जाता है। यह शरिर मे प्रवेश कर जल्द से जल्द प्रजनन कर के अपनि संख्या मे व्रध्दि करता है। श्रेणी:प्रोटोज़ोआ

(ब)मिट्टी में लगातार रसायनों के छिड़काव एवं रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती मांग ने पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी घटाया है| इन रसायनों के प्रभाव से मिट्टी को उर्वरकता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या में अत्यधिक कमी हो गयी है| जैसे कि, हवा से नाइट्रोजन खींचकर जमीन में स्थिरीकरण करनेवाले जीवाणु राइजोबियम, एजेटोबैक्टर, एजोस्पाइरलम, फास्फेट व पोटाश घोलनशील जीवाणु आदि| इसलिए मिट्टी में इन जीवाणुओं की संख्या बढ़ाने हेतु इनके कल्चर का उपयोग जैविक खादों के साथ मिलाकर किया जाता है| किसी विशिष्ट उपयोगी जीवाणु/कवक/फुन्फंद/ को उचित माध्यम में (जो कि साधरणतः ग्रेनाइट या लिग्नाइट का चुरा होता है) ये जीवाणु 6 माह से एक वर्ष तक जीवित रह सकते हैं| सामान्यतः अधिक गर्मी (40 से ऊपर) में ये जीवाणु मर जाते हैं| जीवाणु कल्चर का भंडारण सावधानी पूर्वक शुष्क एवं ठंडी जगह पर करना चाहिए|

जीवाणु कल्चर को बीज या जैविक खादों के साथ मिलाकर मिट्टी में मिलाने पर खेत में इन जीवाणुओं की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है और नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है| नाइट्रोजन हेतु राइजोबियम, एजेटोबैक्टर, एसेटोबैक्टर, तथा फोस्फोरस हेतु फोस्फेट घोलनशील जीवाणु कल्चर का प्रयोग किया जाता है|

जैव-उर्वरक विभिन्न प्रकार के मिट्टी जनित रोगों के नियंत्रण में सहायक सिद्ध होते हैं| इसके अतिरिक्त जैव उर्वरकों से किसी भी प्रकार का प्रदुषण नहीं फैलता है और इसका कोई दुष्परिणाम भी देखने में नहीं आया है और न ही इसका प्रयोग करनेवालों पर इनका कोई दुष्प्रभाव देखा गया है| जैव-उर्वरकों के उपयोग करने से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता में कमी देखी जा सकती है| पिछले कुछ दशकों से निम्न कुछ प्रमुख जैव-उर्वरकों का प्रयोग किसानों द्वारा किया जा है |

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