यादि शयामपट बोलने लागा hindi essay easy
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[ यदि स्याम पट बोलने लगे ]
बचपन से लेकर अब तक हम सभी अपने स्कूलों में जिस छोटी चार दीवारी को देखते आए हैं , उसका नाम हैं स्यामपट । जैसे इसका नाम ब्लैक बोर्ड हैं । ये काला जरूर हैं मगर इसे ध्यान लगा कर देखना ही पड़ता हैं ।
लेकिन आज हम जो कुछ भी हैं जैसे हम पढ़ सकते हैं , अच्छे और गलत में फर्क करना जानते हैं वो इस ब्लैक बोर्ड की वजह से ही संभव हो पाया है । इस मौन चार दीवारी से ही हमने अपनी पढ़ाई की शुरुआत की थी ।
बच्चों को सबसे प्यारी चीजें वो लगती हैं जो बोला करती हैं । पर ब्लैक बोर्ड का क्या वो तो एक तो स्थिर रहती हैं और दूसरे मौन । इससे कुछ बच्चे मायूस भी हो जाते हैं । और कुछ ना चाहते हुए भी उसे देखते रहते हैं ।
लेकिन ज़रा सोचिए क्या होता जब ब्लैक बोर्ड बोलने लगता ; कितना अच्छा रहता ; जिन बच्चों को क्लास में नींद आती , तथा जो मायूस रहते । उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती और उनका पढ़ाई में भी मन लगने लगता ।
इससे ब्लैक बोर्ड को भी आराम मिलता और अध्यापकों को भी । पहले क्या था - उन पर पहले लिखा जाता था तथा फिर रगड़ कर मिटा दिया जाता था । इससे ब्लैक बोर्ड को भी तकलीफ होती थी ।
लेकिन जब यह बोलने लगे तो इसकी तो बात ही कुछ अलग हैं । जो बच्चे प्रतिदिन स्कूल नहीं जाते वो भी जाने लगते । क्योंकि पहली बार ब्लैक बोर्ड बोल जो रहा है । बच्चों में तो खुशी रही लेकिन अध्यापकों में नाराजगी ; क्योंकि अब उनकी पिटाई नहीं हो पाती ।
धन्यवाद ।।
बचपन से लेकर अब तक हम सभी अपने स्कूलों में जिस छोटी चार दीवारी को देखते आए हैं , उसका नाम हैं स्यामपट । जैसे इसका नाम ब्लैक बोर्ड हैं । ये काला जरूर हैं मगर इसे ध्यान लगा कर देखना ही पड़ता हैं ।
लेकिन आज हम जो कुछ भी हैं जैसे हम पढ़ सकते हैं , अच्छे और गलत में फर्क करना जानते हैं वो इस ब्लैक बोर्ड की वजह से ही संभव हो पाया है । इस मौन चार दीवारी से ही हमने अपनी पढ़ाई की शुरुआत की थी ।
बच्चों को सबसे प्यारी चीजें वो लगती हैं जो बोला करती हैं । पर ब्लैक बोर्ड का क्या वो तो एक तो स्थिर रहती हैं और दूसरे मौन । इससे कुछ बच्चे मायूस भी हो जाते हैं । और कुछ ना चाहते हुए भी उसे देखते रहते हैं ।
लेकिन ज़रा सोचिए क्या होता जब ब्लैक बोर्ड बोलने लगता ; कितना अच्छा रहता ; जिन बच्चों को क्लास में नींद आती , तथा जो मायूस रहते । उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती और उनका पढ़ाई में भी मन लगने लगता ।
इससे ब्लैक बोर्ड को भी आराम मिलता और अध्यापकों को भी । पहले क्या था - उन पर पहले लिखा जाता था तथा फिर रगड़ कर मिटा दिया जाता था । इससे ब्लैक बोर्ड को भी तकलीफ होती थी ।
लेकिन जब यह बोलने लगे तो इसकी तो बात ही कुछ अलग हैं । जो बच्चे प्रतिदिन स्कूल नहीं जाते वो भी जाने लगते । क्योंकि पहली बार ब्लैक बोर्ड बोल जो रहा है । बच्चों में तो खुशी रही लेकिन अध्यापकों में नाराजगी ; क्योंकि अब उनकी पिटाई नहीं हो पाती ।
धन्यवाद ।।
MsPRENCY:
Wah! kya bolun mai.. words hi Nhi Hain!☺
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