Hindi, asked by 5007, 7 months ago

युद्ध भूमि में कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद को लिखें​

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Answered by themainheroirony
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Answer:

यह है उत्तर

Explanation:

अर्जुन के मन में उठ रहे प्रश्नों पर भगवान श्रीकृष्ण के सुन्दर जवाब , ये वो प्रश्न है जो नित्य हमारे मन को भी अशांत कर देते है और ये श्रीकृष्ण के वो सुन्दर जवाब जिन्हे पढ़ कर आप के मन में उठ रही लहरे शांत हो जाएगी और जीवन को अवश्य ही एक नयी दिशा प्राप्त होगी।

अर्जुन : मुझे खाली वक़्त नहीं मिल पाता , जीवन बहुत ही व्यस्त हो गया है ?

कृष्ण : कोई भी गतिविधि आपको व्यस्त रखती है और उत्पादकता उस व्यस्तता से आराम दिलाती है।

अर्जुन : जीवन इतना कठिन क्यों हो गया है ?

कृष्ण : जीवन के बारे में सोचना बंद कर दो , ये जीवन को कठिन करता है , सिर्फ जीवन को जियो।

अर्जुन : हम सदैव दुखी क्यों रहते है ?

कृष्ण : चिंता करना तुम्हारी आदत बन चुकी है , इसलिए तुम दुखी हो।

अर्जुन : लोगो को इतना कष्ट क्यों भुगतना पड़ता है ?

कृष्ण : हीरे को रगड़ के बिना चमकाया नहीं जा सकता और सोने को कभी ताप के बिना खरा नहीं किया जा सकता , अच्छे लोगो को परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ता है , ये कष्ट भुगतना नहीं हुआ। अनुभव से जीवन सुखद बनता है , ना की दुखद।

अर्जुन : आप के कहने का मतलब है की ये अनुभव काम के है ?

कृष्ण : मेरे कहने का मतलब यही है की अनुभव एक कठोर शिक्षक है , जो पहले परीक्षा लेते है और बाद में पाठ पढाते है।

अर्जुन : जीवन की बहुत सारी समस्याओं की वजह हमें ये ही समझ नहीं आता की हम किधर जा रहे है ?

कृष्ण : अगर बाहर देखोगे तो समझ नहीं आएगा की कंहा जा रहे है , अपने भीतर देखो। आँखे दिशा दिखाती है और दिल रास्ता।

अर्जुन : क्या असफलता ज्यादा दुखी करती है या सही दिशा में नहीं जा पाना ?

कृष्ण : सफलता का मापदंड हमेशा दूसरे लोग तय करते है और संतुष्टि का आप स्वयं।

अर्जुन : कठिन समय में अपने आप को प्रेरित कैसे रखना चाहिए ?

कृष्ण : हमेशा देखो आप कितने दूर आ चुके हो बजाये ये देखने के की अभी कितनी दूर और जाना है , हमेशा ध्यान रखे ईश्वर की कृपा से क्या मिला है ये नहीं की क्या नहीं मिला है।

अर्जुन : लोगो के बारे में सबसे अधिक क्या अचंभित करता है?

कृष्ण : जब वे कठिनाई में होते है तो कहते है “मैं ही क्यों ?” जब वो समृद्ध होते है तब कभी नहीं कहते की “मैं क्यों ?”

अर्जुन : मैं अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ कैसे प्राप्त कर सकता हु ?

कृष्ण : अपने पिछले जीवन का बिना किसी खेद के सामना करो , वर्तमान को आत्म विश्वास से जियो और भविष्य का सामना करने के लिए अपने को निडरता से तैयार रखो।

अर्जुन : मेरा अंतिम सवाल , कई बार मुझे ऐसा लगता है की मेरी प्रार्थनाओं की सुनवाई नहीं होती।

कृष्ण : कोई भी ऐसी प्रार्थना नहीं है जिसकी सुनवाई न हुई हो , विश्वास रखो और भय मुक्त हो जाओ। जीवन एक पहेली है सुलझाने के लिए , कोई समस्या नहीं है जिसका हल खोजा जाये। मुझ पर विश्वास रखो , जीवन बहुत सुन्दर है अगर आपको जीना आता है तो , हमेशा खुश रहे ।

श्लोक

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः

Answered by tulsi3052007
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महाभारत में जब कौरव और पांडवों का युद्ध शुरू होने वाला था। तब अर्जुन ने शस्त्र रख दिए थे। क्योंकि वे अपने कुटुंब लोगों से युद्ध नहीं करना चाहते थे। उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता सार समझाया था। उस समय गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ। श्रीकृष्ण ने गीता के दूसरे अध्याय के 48वें श्लोक में बताया है कि हमारा कतर्व्य ही धर्म है।

योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।

सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।

इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे धनंजय। कर्म न करने का विचार त्याग दो। यश-अपयश के विषय में न सोचो। सिर्फ अपना कर्म करो। समत्व यानी समभाव रहकर ही अपने कर्तव्य पूरे करना चाहिए, इसे भी योग कहते हैं।

इसका सरल अर्थ यह है कि हमें हर स्थिति में अपना कर्तव्य समभाव होकर पूरा करना चाहिए। यही हमारा धर्म है। लोग धर्म को पूजा-पाठ, कर्मकांड और तीर्थ-मंदिरों तक ही समझते हैं। जबकि हमारा कर्तव्य ही हमारा धर्म है। इसीलिए लाभ-हानि, यश-अपयश का विचार छोड़कर सिर्फ अपने धर्म पर, अपने कर्तव्य पर ध्यान लगाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखेंगे तब ही मन को शांति मिल सकती है। जो किसी भी काम की शुरुआत में लाभ-हानि, यश-अपयश के बारे में सोचते हैं, उन्हें न तो सफलता मिलती है और न ही उनका मन कभी शांत हो पाता है।
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