युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi
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युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi
लौट आओ, माँग के सिंदूर की सौगन्ध तुमको,
नयन का सावन, निमन्त्रण दे रहा है।"
अरब और इजराइल, भारत और पाक, उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम, उत्तरी कोरिया एवं दक्षिण कोरिया, इराक पर सैन्य आक्रमण, अफगानिस्तान में तालिबान मदरसे, इस्राइल तथा फिलस्तीन संघर्ष, चीन वियतनाम युद्ध तथा इनसे पूर्व युद्धों की विधवायें आज भी एक दर्दभरी आह भरकर उपरिलिखित पंक्तियों को दुहराने लगती हैं, कितना कारुणिक दृश्य है, इन युद्धों के परिणामों का। स्वार्थी राष्ट्र कब चाहता है कि उसका पड़ौसी सुख से समय काट ले। एक राष्ट्र कब चाहता है कि दूसरा राष्ट्र फले-फूले और आगे बढ़े। ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा की आग एक-दूसरे को जलाने के लिए अपनी जीभ लपलपाती रहती है। प्रत्येक राष्ट्र अपने को दूसरे से आगे देखना चाहता है, उसके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करके, गृह-युद्ध भड़काकर, बाहर से आक्रमण करने की प्रतीक्षा में घात लगाये बैठा रहता है। स्वार्थों का टकराव, अपनी सार्वभौमिकता की रक्षा, नियन्त्रण में रखने की मनोवृत्ति, दूसरों पर अपना प्रभुत्व स्थापना का गर्व आदि कारण रूपी तीव्र वायु युद्ध के बादलों को एक जगह लाकर इकट्ठा कर देती हैं। एक राष्ट्र दूसरों से अपने सिद्धान्त और विचारधाराओं को हठात् मनवाना चाहता है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों से अपने उचित, अनुचित कार्यों में जबरदस्ती समर्थन चाहता है और मनवांछित समर्थन न मिलने पर उसे सहायता न देने और समय आने पर बर्बाद करने की धमकी देता है। विश्व के राष्ट्र में शस्त्र-अत्रों के निर्माण और उन्हें एकत्रित करने की होड़ लगी हुई है, आखिर क्यों ? केवल अपनी दानवी और आसुरी पिपासा को युद्ध के रक्त से शान्त करने के लिए।
देवासुर संग्राम सदैव से होते आये हैं। 'वीरभोग्या वसुन्धरा’ के आधार पर सदैव से शक्तिशालियों ने अशक्तों पर आक्रमण और अत्याचार किये हैं। प्राचीनकाल में भी राजाओं में युद्ध होते थे, परन्तु उन युद्धों और आज के युद्ध में पृथ्वी और आकाश का अन्तर है। आमने-सामने की लड़ाई और मल्ल युद्धों का समय जा चुका है। युद्ध-साधनों की व्यापकता इतनी बढ़ गई है कि वर्णन नहीं किया जा सकता कि कब क्या हो जाये? आज के युद्ध केवल भूमि पर ही नहीं लड़े जाते, अपितु आकाश और परिवार का प्रांगण भी समरांगण बन गया है। ध्वनि से भी दुगुनी गति से उड़ने वाले लड़ाकू जेट, कैनेबरा और मिग जैसे विमान एक क्षण में हजारों वर्ग किमी भूमि, अनन्त प्रासादों और असंख्य मानवों के संहार में भयंकर अणु बम एवम् हाइड्रोजन बम, पृथ्वी से आकाश तक मार करने वाले रॉकेट, आकाश की लड़ाई में काम आने वाले नवीनतम शस्त्रों और नवीनतम प्रणाली की गड़गड़ाहट भरी तोपों ने आज के युद्ध का स्वरूप ही बदल दिया है। जल, थल और नभ–तीनों प्रकार की युद्धकला के नवीन आविष्कारों ने युद्ध-कशल में आमूल परिवर्तन उपस्थित कर दिया है।
युद्ध का कल्पनातीत नरसंहार कितनी माताओं की गोदियों के इकलौते लाडलों को, कितनी प्रेयसियों के जीवनाधारों को, कितनी सधवाओं के सौभाग्य बिन्दु को, कितनी बहिनों की राखियों को अपने क्रूर हाथों से एक साथ ही छीन लेता है। यह विचार भी नहीं किया जा सकता, कितने बच्चे अनाथ होकर दर-दर की ठोकरें खाने लगते हैं, कितनी विधवायें अपने जीवन को सारहीन समझकर आत्महत्या कर लेती हैं, कितने परिवारों का दीपक युग-युग के लिये बुझ जाता है, कितने पिता अपने पुत्र को याद करते-करते अपना प्राणोत्सर्ग कर लेते हैं, कौन जाने ? असंख्य पुरुषों का संहार और नारियों का अवशेष जीवन देश में चरित्रहीनता ला देता है। पुरुषों के अभाव में देश का उत्पादन रुक जाता है, वृद्ध रह जाते हैं जो न खेती कर सकते हैं और न कल-कारखानों में काम। देश के कलाकार, शिल्पकार, वीर, विशेषज्ञ, डॉक्टर, सभी समय पड़ने पर आपातकालीन स्थिति में, युद्ध भूमि में बुला लिये जाते हैं। परिणाम यह होता है कि युद्ध के बाद न कोई किसी कला का दक्ष बच पाता है और न वीर। विषाक्त गैसों से अनेकों बीमारियाँ फट पडती हैं इलाज करने वाले डॉक्टर होते नहीं, देश पर गरीबी छा जाने के कारण पैसा रहता नहीं विध्वंसक विस्फोटों के कारण भूमि की उर्वराशक्ति नष्ट हो जाती है, कल-कारखाने बन्द हो जाते हैं। उनमें काम करने वाले पैदा नहीं होते, अन्धे, लंगड़े, लूले और अपाहिजों की संख्या बढ़ जाती है। कुछ तो युद्ध-भूमि में विकलांग हो जाते हैं और कुछ नगरों में बम वर्षा से मकान धराशायी हो जाते हैं, सोने या विश्राम के लिए केवल ऊपर आकाश और नीचे पृथ्वी ही होती है। जब रुई और कपास पैदा करने वाले और उसके योग्य भूमि हो न रही तो मिल स्वयं बन्द हो जाते हैं, जीवनयापन के लिए दैनिक उपयोग की वस्तुओं का मिलना असम्भव हो जाता है और यदि मिलती भी है तो दस गुनी कीमतों पर। उत्पादन के अभाव में मूल्य वृद्धि इतनी बढ़ जाती है कि कोई वस्तु खरीदना सम्भव नहीं होता। देश में अकाल की स्थिति आ जाती है। लोग बेमौत मरने लगते हैं, कुछ भूख से और कुछ बीमारियों से। जनता का स्वास्थ्य, मनोबल और नैतिक चरित्र गिर जाता है, क्योंकि भूखा क्या पाप नहीं करता ?