युदद मे sab kuch Jayeje Hain
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सबने देखा था लड़के ने लड़की पर 30 बार चाकू से वार किया था. क्योंकि वह लड़की से प्यार करता था लड़की ने उसे मना किया तो उसने उसपर सरेराह चाकू से वार कर दिया था. यह घटना कहीं दूर की नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली की थी. थोडा दूर चले तो पिछले साल छत्तीसगढ़ के मुंगेल में एकतरफा प्यार करने वाले एक युवक ने एक युवती के घर में घुस कर उसे अपने साथ भागने के लिए कहा और जब युवती ने साथ जाने के इनकार कर दिया, तो युवक ने मिट्टी का तेल डालकर युवती को आग के हवाले कर दिया. इश्क और जंग में सब जायज है न?
इस दुनिया के सबसे बड़े जाहिल ने कहा था, इश्क और जंग में सब कुछ जायज है… क्योंकि अगर ऐसा है तो बॉर्डर पर सिपाहियों के सर काटने वाले भी जायज हैं और लड़कियों पर एसिड फेंकने वाले आशिक भी जायज हैं.? जल्दी ही रुपहले पर्दे पर एक फिल्म आने वाली है फिल्म जॉली एलएलबी 2 में अक्षय कुमार यह डॉयलाग दोहराते मिलेगे. दरअसल “इश्क और जंग में सब जायज है. यह कथन इतनी फिल्मों में सुन चुके हैं कि हम इसे सच मान बैठे हैं अक्षय का ये डायलॉग वाकई काफी असरदार है.क्योंकि यह डायलॉग समाज के उस तबके को सोचने को मजबूर कर देगा जो प्यार के नाम किसी भी हद तक जाकर अपराध और सामाजिक सीमाओं का उलन्घन करते है.
90 के दशक में शाहरुख खान ने फ़िल्मी माध्यम से बताया था कि इश्क और जंग में सब जायज है तो अब अक्षय बता रहे है नहीं सब कुछ जायज नहीं है. 1913 मे बनी पहली मूक फिल्म से हम विधवा विवाह, जातिवाद पर कटाक्ष करने से लेकर हम रोमांटिक फिल्मों तक आये जिसमे कई फिल्मे तो ऐसी आई जिसने समाज में क्रांति का काम किया तब की पीढ़ी ने तब अनुसरण किया आज की फिल्मों का अनुसरण आज की पीढ़ी करेगी. जैसे आज की पीढ़ी नायक, नायिकाओं का फैशन मे अनुसरण कर रही हैं. यही नहीं जिस प्रकार से आजकल की फिल्मों की कहानी होती है, संदेश होते हैं उन्हे आज की पीढ़ी अपने विचारों मे सम्मिलित कर रही है.
अक्सर किसी न किसी मोहल्ले में एक लव गुरु जरुर पाया जाता है जो लोगों को बताता है कैसे लड़की को पटाया फंसाया जाता है. जब कोई इसका चेला गैर जरूरी या अमर्यादित कदम उठाने से हिचकता है तो यह लव गुरु बताता प्यार और जंग में सब जायज है अत: कर दे बेटा कांड भली करे करतार… शायद ऐसे आशिक ये लाइन बहुत सीरियसली ले लेते हैं. तभी तो इश्क में कुछ भी कर गुजरते हैं. मतलब सदियों से इसी गलत मान्यता को को लेकर मानते आ रहे हैं कि जंग में कितना भी खून बहे या इश्क में किसी भी हद तक गिरना पड़े सब जायज है.
गुजरे साल की अगस्त माह की खबर ले ही लीजिये जब एक परिवार बदायूँ में किसी दरगाह पर चादर चढ़ाकर लौट रहा था. परिवार के 5 सदस्य जिस कार में थे वो कार नहर में गिर गई और सब डूबकर मर गए थे. इसी परिवार की एक लड़की अपने प्रेमी के साथ बाद में पकड़ी गयी थी जिसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही परिवार के सदस्यों को नशीली गोलियाँ खिलाकर कार को नहर में धकेल दिया था. यह अपराध उसने सिर्फ इस लिए किया था कि प्रेमी युवक पहले से शादीशुदा था परिवार वाले इस रिश्ते के खिलाफ था. अब कहिये इश्क और जंग में सब जायज है न?
इस कथन को बेहुदे बाल कटाकर गली मोहल्ले के चव्वनी छाप प्रेमी से लेकर सब इतना सच मान बैठे जितना अरस्तु का वो वाक्य यूरोप के लोगों ने हजार साल तक सच माना कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के मुंह में कम दांत होते है. हर किसी के पास स्त्री थी माँ-बहन, बेटी और पत्नी सब थी पर एक हजार साल तक किसी को फुरसत नहीं थी की स्त्री के दांत गिनकर देख ले फिर एक हजार साल बाद कोई दूसरा आया उसने दांत गिनकर लोगों से पूछा, किस जाहिल ने कहा था स्त्र्री के मुंह में कम दांत होते है?
असल में सबसे पहले इसे जॉन लिलि नाम के एक लेखक ने अपनी नॉवेल इयूफ्यूस: (दा अनाटोमी ऑफ विट) में लिखा था जो 1579 में छपी थी कि युद्ध और प्रेम में सब जायज है. 400 साल से ज्यादा हो गये पूरी दुनिया सच मान कर चल रही है. एक बार सोचकर देखो कि एक सुन्दर लड़की जा रही है किसी लड़के ने उसे देखा उसे पसंद आई और एक नजर वाला प्यार हो गया. उसने लड़की से प्रेम निवेदन किया. लड़की ने निवेदन ठुकरा दिया. आखिर वो लड़की है कोई एटीएम मशीन नहीं की किसी ने कार्ड स्वीप किया और नकदी मुद्रा ले ली. लड़की ने साफ ठुकराया ही नहीं बल्कि उसे नसीहत के साथ आगे के लिए चेतावनी भी दे दी. अब लड़के को गुस्सा आया उसे प्रेम हुआ था इसने ठुकरा दिया बस तेजाब उठाया लड़की के ऊपर दे मारा. या चाकू लिया दे मारा! आखिर इश्क और जंग में सब जायज है न?
हर कोई हिटलर और मुसोलिनी की निंदा करता है. हर कोई अमेरिका द्वारा हिरोशिमा नागासाकी पर गिराए गये परमाणु बम की निंदा करता है. तालिबान और गद्दाफी की निंदा होती है. अमेरिका पर 9/11 के हमले की निंदा होती है आखिर क्यों जब युद्ध में भी सब जायज है तो निंदा या सवेंदना का प्रश्न क्यों? हम सब जानते है कि सब कुछ जायज नहीं होता न युद्ध में अति होनी चाहिए न प्रेम में. युद्ध की भी एक सीमा होती है और प्रेम की भी. असीम और जायज सब कुछ नहीं होता.
HOPE IT HELPS U DEAR ♥♥
इस दुनिया के सबसे बड़े जाहिल ने कहा था, इश्क और जंग में सब कुछ जायज है… क्योंकि अगर ऐसा है तो बॉर्डर पर सिपाहियों के सर काटने वाले भी जायज हैं और लड़कियों पर एसिड फेंकने वाले आशिक भी जायज हैं.? जल्दी ही रुपहले पर्दे पर एक फिल्म आने वाली है फिल्म जॉली एलएलबी 2 में अक्षय कुमार यह डॉयलाग दोहराते मिलेगे. दरअसल “इश्क और जंग में सब जायज है. यह कथन इतनी फिल्मों में सुन चुके हैं कि हम इसे सच मान बैठे हैं अक्षय का ये डायलॉग वाकई काफी असरदार है.क्योंकि यह डायलॉग समाज के उस तबके को सोचने को मजबूर कर देगा जो प्यार के नाम किसी भी हद तक जाकर अपराध और सामाजिक सीमाओं का उलन्घन करते है.
90 के दशक में शाहरुख खान ने फ़िल्मी माध्यम से बताया था कि इश्क और जंग में सब जायज है तो अब अक्षय बता रहे है नहीं सब कुछ जायज नहीं है. 1913 मे बनी पहली मूक फिल्म से हम विधवा विवाह, जातिवाद पर कटाक्ष करने से लेकर हम रोमांटिक फिल्मों तक आये जिसमे कई फिल्मे तो ऐसी आई जिसने समाज में क्रांति का काम किया तब की पीढ़ी ने तब अनुसरण किया आज की फिल्मों का अनुसरण आज की पीढ़ी करेगी. जैसे आज की पीढ़ी नायक, नायिकाओं का फैशन मे अनुसरण कर रही हैं. यही नहीं जिस प्रकार से आजकल की फिल्मों की कहानी होती है, संदेश होते हैं उन्हे आज की पीढ़ी अपने विचारों मे सम्मिलित कर रही है.
अक्सर किसी न किसी मोहल्ले में एक लव गुरु जरुर पाया जाता है जो लोगों को बताता है कैसे लड़की को पटाया फंसाया जाता है. जब कोई इसका चेला गैर जरूरी या अमर्यादित कदम उठाने से हिचकता है तो यह लव गुरु बताता प्यार और जंग में सब जायज है अत: कर दे बेटा कांड भली करे करतार… शायद ऐसे आशिक ये लाइन बहुत सीरियसली ले लेते हैं. तभी तो इश्क में कुछ भी कर गुजरते हैं. मतलब सदियों से इसी गलत मान्यता को को लेकर मानते आ रहे हैं कि जंग में कितना भी खून बहे या इश्क में किसी भी हद तक गिरना पड़े सब जायज है.
गुजरे साल की अगस्त माह की खबर ले ही लीजिये जब एक परिवार बदायूँ में किसी दरगाह पर चादर चढ़ाकर लौट रहा था. परिवार के 5 सदस्य जिस कार में थे वो कार नहर में गिर गई और सब डूबकर मर गए थे. इसी परिवार की एक लड़की अपने प्रेमी के साथ बाद में पकड़ी गयी थी जिसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही परिवार के सदस्यों को नशीली गोलियाँ खिलाकर कार को नहर में धकेल दिया था. यह अपराध उसने सिर्फ इस लिए किया था कि प्रेमी युवक पहले से शादीशुदा था परिवार वाले इस रिश्ते के खिलाफ था. अब कहिये इश्क और जंग में सब जायज है न?
इस कथन को बेहुदे बाल कटाकर गली मोहल्ले के चव्वनी छाप प्रेमी से लेकर सब इतना सच मान बैठे जितना अरस्तु का वो वाक्य यूरोप के लोगों ने हजार साल तक सच माना कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के मुंह में कम दांत होते है. हर किसी के पास स्त्री थी माँ-बहन, बेटी और पत्नी सब थी पर एक हजार साल तक किसी को फुरसत नहीं थी की स्त्री के दांत गिनकर देख ले फिर एक हजार साल बाद कोई दूसरा आया उसने दांत गिनकर लोगों से पूछा, किस जाहिल ने कहा था स्त्र्री के मुंह में कम दांत होते है?
असल में सबसे पहले इसे जॉन लिलि नाम के एक लेखक ने अपनी नॉवेल इयूफ्यूस: (दा अनाटोमी ऑफ विट) में लिखा था जो 1579 में छपी थी कि युद्ध और प्रेम में सब जायज है. 400 साल से ज्यादा हो गये पूरी दुनिया सच मान कर चल रही है. एक बार सोचकर देखो कि एक सुन्दर लड़की जा रही है किसी लड़के ने उसे देखा उसे पसंद आई और एक नजर वाला प्यार हो गया. उसने लड़की से प्रेम निवेदन किया. लड़की ने निवेदन ठुकरा दिया. आखिर वो लड़की है कोई एटीएम मशीन नहीं की किसी ने कार्ड स्वीप किया और नकदी मुद्रा ले ली. लड़की ने साफ ठुकराया ही नहीं बल्कि उसे नसीहत के साथ आगे के लिए चेतावनी भी दे दी. अब लड़के को गुस्सा आया उसे प्रेम हुआ था इसने ठुकरा दिया बस तेजाब उठाया लड़की के ऊपर दे मारा. या चाकू लिया दे मारा! आखिर इश्क और जंग में सब जायज है न?
हर कोई हिटलर और मुसोलिनी की निंदा करता है. हर कोई अमेरिका द्वारा हिरोशिमा नागासाकी पर गिराए गये परमाणु बम की निंदा करता है. तालिबान और गद्दाफी की निंदा होती है. अमेरिका पर 9/11 के हमले की निंदा होती है आखिर क्यों जब युद्ध में भी सब जायज है तो निंदा या सवेंदना का प्रश्न क्यों? हम सब जानते है कि सब कुछ जायज नहीं होता न युद्ध में अति होनी चाहिए न प्रेम में. युद्ध की भी एक सीमा होती है और प्रेम की भी. असीम और जायज सब कुछ नहीं होता.
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