यादवांच्या काळात महाराष्ट्रात कोणत्या संप्रयदांचा उदय झाला
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यादव भारत में पारंपरिक रूप से गैर-कुलीन किसान-चरवाहे समुदायों या जातियों का एक समूह को संदर्भित करता शब्द है। 19वीं और 20वीं शताब्दी से वह सामाजिक और राजनीतिक पुनरुत्थान के आंदोलन के भाग के रूप में पौराणिक राजा यदु के वंश से होने का दावा करते हैं।[1][2][3]
यदुवंशी क्षत्रिय मूलतः अहीर थे।[4] यादव शब्द अब कई पारंपरिक किसान-चरवाहे जातियों जैसे कि अहीर और महाराष्ट्र के गवली को शामिल करता है। परंपरागत रूप से यादव समूहों को मवेशी पालने से जोड़ा जाता था और इस कारण वह औपचारिक जाति-व्यवस्था के बाहर थे।[5] उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के बाद से यादव आंदोलन ने अपने घटकों की सामाजिक प्रतिष्ठा को सुधारने के लिए काम किया है। इसमें संस्कृतीकरण, भारतीय और ब्रिटिश सशस्त्र बलों में सक्रिय भागीदारी, अधिक प्रतिष्ठित व्यापारिक क्षेत्रों में शामिल होना और राजनीति में सक्रिय भागीदारी प्रमुख है। यादव नेताओं और बुद्धिजीवियों ने अक्सर यदु और कृष्ण के वंश से होने के अपने दावे पर ध्यान केंद्रित किया है। वे तर्क देते हैं कि इससे उनका क्षत्रिय का दर्जा है।
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