युवा पीढ़ी आज भी डॉक्टर कलाम को अपना आदर्श मानती है ऐसा क्यों
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एक महान व्यक्तित्व जो संत की तरह जीता था। एक संत जिसके अंदर वैज्ञानिक का कुशाग्र मस्तिष्क था। एक वैज्ञानिक जो शोध और खोज के लिए बंद कमरों में रहने से ज्यादा स्कूल के बच्चों के बीच खुशी महसूस करता था और एक वैज्ञानिक जो दार्शनिक की तरह सोचता था। जी हां, ऐसे ही थे हमारे अपने डॉक्टर कलाम। आज जब देश की राजनीति का हर चेहरा दागदार नजर आता है वैसे में डॉक्टर कलाम एकमात्र ऐसे नेता थे जिनके व्यक्तित्व के साथ कोई किंतु-परंतु, लेकिन जैसे संदेहसूचक शब्द नहीं जुड़े थे। एक बहुत ही निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की संतान से देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक का सफर तय कर उन्होंने एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। इनका जीवन, इनका संघर्ष हर किसी के लिए प्रेरणादायी है। एक मछुआरे परिवार में जन्म लेने वाले कलाम को अपनी आरम्भिक शिक्षा अखबार बेचकर पूरी करनी पड़ी। तब उन्हें कहां पता था कि एक दिन इन अखबारों के पन्ने उनकी यशगाथा से पटे होंगे। उनका यह कहना कि 'सपने वे नहीं जो नींद में आते हैं, सपने वे हैं जो नींदें चुराते हैं' उन्हें कर्मयोगी सिद्ध करता है। इन्हें अपने काम से बेहद लगाव था। कर्म को ही पूजा मानने के कारण ये जिस भी पद पर भी रहे, एक अमिट छाप छोड़ी।
हाई प्रोफाइल पदों पर रहने वाले अन्य लोगों की तरह ये कभी जनता और अपने बीच बॉडीगार्ड को आने नहीं देते थे। कदाचित इसलिए ये जल्द ही सबके लिए चाचा कलाम बन गए। सच्चे वतनपरस्त थे अब्दुल कलाम। जानते थे कि भारत का भविष्य स्कूलों में आकार लेता है, तभी तो देश के कई स्कूलों में वे जाते, बच्चों से बातें करते, उनसे सवाल पूछते, देशहित में उनसे सुझाव मांगते, साथ ही उनकी जिज्ञासा को भी शात करते थे। बच्चों के सानिध्य में खुशी मिलती थी डॉक्टर कलाम को। मिसाइल मैन पोखरण के सफल परमाणु परीक्षण के लिए जाने जाते थे, पर साथ ही वे दर्शन और आध्यात्म से भी सरोकार रखते थे। अपने वक्तव्य में वे अक्सर धार्मिक ग्रंथों और उनसे मिलने वाले संदेशों का उल्लेख किया करते थे। वो मानते थे कि इंसान सफलता की कितनी भी ऊंचाइयां तय कर ले पर अपनी जमीन को कभी न भूले। अपने भाषणों में उन्होंने हमेशा देश की एकता व अखंडता बनाए रखने की बात कही। उनके व्यक्तित्व में ऐसी खासियत थी कि वे हर जाति, धर्म और संप्रदाय के लगते थे। उनकी आखों में उनके सपनों का भारत बसता था। डॉक्टर कलाम व्यस्तता के बावजूद बच्चों के लिए समय निकाल ही लेते थे। यदि आज की पीढ़ी डॉक्टर कलाम को ही अपना आदर्श मानकर देश के लिए जीना सीख ले तो नि:संदेह कलाम के सपनों का भारत मूर्त हो उठेगा और युवा पीढ़ी की ओर से कलाम को यही सच्ची श्रद्धाजलि होगी।