योवन तेरी चंचल छाया । क्षण भर ले घुट भर पी लू संदर्भ एवं व्यख्या
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योवन तेरी चंचल छाया । क्षण भर ले घुट भर पी लू संदर्भ एवं व्यख्या
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यौवन तेरी चंचल छाया ।
इसमे बैठे घूंट भर पी लूं, जो रस तू है लाया
संदर्भ ➲ ये पंक्तियां ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित ‘ध्रुव स्वामिनी’ नाटक के ‘कोमा का गीत’ की पंक्तियां हैं। नाटक की ही एक पात्र ‘कोमा’ स्वयं से ही बात करते समय ये गीत गाती है।
व्याख्या ➲ लेखक कहते हैं कि यौवन काल का समय मन चंचल और इधर-उधर भटकने वाला होता है। लेकिन यौवन काल ही सुनहरा काल होता है। इस यौवन की छाँव मे रहकर सब यौवन का रस पीना चाहते हैं, अर्थात इस यौवनकाल का पूरा आनंद उठाना चाहते है।
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