yadi me kavi hota essay in hindi
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जिस समाज में हम रह रहे हैं वहां प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग अलग आकांक्षाएं हैं। कोई चिकित्सा के क्षेत्र में अपना नाम ऊंचा करना चाहता है तो कोई सिविल सेवा में जाकर । कोई सरहद पर डटकर देश की सेवा करने की इच्छा रखता है तो कोई राजनीति में रहकर देश के लिए काम करना चाहता है।कोई किसान बनने की भी इच्छा रखता है तो कोई साहित्य जगत में जाकर नाम कामना चाहता है। मैं एक कवि बनकर विश्व साहित्य जगत में अपनी मातृभाषा की सेवा करना चाहता हूँ।
अगर मैं कवि होता तो मैं अपनी रचना में उन अनुभूतियों को व्यक्त करता जो हृदय को छूते हुए मन मस्तिष्क में विचारों का बवंडर उठाती हैं। मैं उस बच्चे के जीवन संघर्ष को लिखता जिसके बालपन को ईंट की चिमनीयों में झोंक दिया गया। उस बच्चे की दास्तां लिखता जो किताबों की जगह समान से भरे बोरे उठाने को विवश है। उस बच्चे की भी दास्तां लिखता जो अभाव के बावजूद अपनी प्रबल इच्छा से सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ आगे बढ़ने की चेष्टा तो करता है परन्तु समाज उसे उपेक्षित करार देता है।
यदि मैं कवि होता तो उस लड़की की वेदना को अपनी कविता में चित्रित करता जिसे कई बार नाप-तौल कर सरे बाजार बेच दिया गया। उस देश की बेटी की कहानी को अपनी कविता के जरिये व्यक्त करता। दहेजप्रथा, डायन बताकर मैला पिलाने की कुप्रथा का, स्त्री को हमेशा दुसरे पायदान पर दर्शाने की पौराणिक संस्कृतियों के कुरूप चेहरे का वर्णन अपनी कविता में करता।
यदि मैं कवि होता तो उन दबे कुचलों के दर्द को लिखता जो भोजन की तलाश में कूड़े-कचरों में अन्न का दाना टटोलते हैं।उनकी पीड़ा, उनके दर्द, दर्द में भी संघर्ष और समाज की उनपर हेय दृष्टि का वर्णन अपनी कविता में मैं करता।
यदि मैं कवि होता तो वृद्धाश्रम में रोती माँ की व्यथा को अपनी कविता में दर्शाता जो प्रसव पीड़ा से भी गहरी थी। उस बाप के काँधे की कहानी लिखता जिसपर बैठकर कभी बेटा मेला घूमा करता था पर आज उस काँधे पर खुद का पेट भरने के लिए एक गठरी है जो उसके बूढ़ी हड्डियों को तोड़ती जा रही।
अंततः मैं यही कहूंगा कि यदि मैं कवि होता तो इस संवेदनहीन हो चुके संसार को अपनी कविता के माध्यम से , अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से संवेदनशील बनाने का प्रयास करता।