Yadi mein adhyapak hota 500 words
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भूमिका- यदि मैं अध्यापक होता तो कक्षा में मेरी स्थिति वही होती जो मस्तिष्क की शरीर में, इंजन की रेलगाड़ी में तथा पंखे की वायुयान में होती है। मुझे अध्यापन कार्य तथा छात्रों का दिशा बोध करना पड़ता। निस्संदेह मेरा काम काफ़ी जटिल होता और कठिनाइयाँ तथा चुनौतियाँ पग-पग पर मेरे रास्ते में रुकावटें डालती हुई दिखाई देतीं। लेकिन मैं अपने कदम आगे की ओर ही बढ़ाता जाता।
अनुशासन का ध्यान– यदि मैं अध्यापक होता तो सबसे पहले अनुशासन स्थापित करता क्योंकि अनुशासन राष्ट्र की नींव होती है। मैं विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने की योजना बनाता। मैं यह भली प्रकार से जानता हूँ कि विद्यार्थी अनुशासन को तभी भंग करते हैं जब उनकी इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं। मैं विद्यालय के अनेक कायाँ में विद्यालयों का सहयोग प्राप्त करता। मैं उन्हें सहकारी समिति बनाने के लिए कहता। वे अपने चुनाव करते और देर से आने वाले विद्यार्थियों के लिए स्वयं ही दंड विधान करते। इस प्रकार वे स्वयं को विद्यालय का अंग मानने लगते तथा ऐसे करके मैं अनुशासन स्थापित करने में सफल हो जाता।
आत्मविश्वास की भावना– यदि मैं अध्यापक होता तो मैं छात्रों की कठिनाइयों का पता लगाता। मैं सहयोगी अध्यापकों से पूछता कि वे किस प्रकार आदर्श शिक्षा देना चाहते हैं ? इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मैं अपनी नीति का ऐसा स्वरूप निश्चित करता जिसमें विद्यार्थी प्रसन्न रहते। इससे उनमें आत्म-विश्वास तथा संतोष की भावना दृढ़ होती है।
आदर्श नागरिक बनने की शिक्षा- मैं जानता हूँ कि आज के बालक कल के नेता होते हैं। अत: राष्ट्र तभी उन्नति कर सकता है जब विद्यालय के बालकों को अच्छी शिक्षा दी जाए। उन्हें राष्ट्र के नेता बनाने के लिए उनके बाल्य जीवन से ही नेतृत्व के गुणों का विकास करना अति आवश्यक है। मैं उनकों आदर्श नागरिक बनने की शिक्षा देता ताकि राष्ट्र उनके नेतृत्व से लाभ उठा सकता।
अपना आदर्श प्रस्तुत करना- मैं उपदेश देश की बजाय अपना आदर्श प्रस्तुत करने पर बल देता। मैं दूसरों को कुछ नहीं कहता और उनकों स्वयं कुछ करके दिखाता। अन्य अध्यापक भी मुझ से प्रेरित होकर कर्मशील हो जाते। चूंकि बालकों में अनुकरण की प्रवृत्ति होती है अत: वे मुझे और अध्यापकों को कार्य में लगे देखकर प्रेरित होते।
उपसंहार- मैं छात्रों के साथ मित्रता का व्यवहार करता। किसी पर भी अनुचित दबाव न डालता। काश ! मैं अध्यापक होता और अपने स्वप्नों को साकार रूप देता।
अनुशासन का ध्यान– यदि मैं अध्यापक होता तो सबसे पहले अनुशासन स्थापित करता क्योंकि अनुशासन राष्ट्र की नींव होती है। मैं विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने की योजना बनाता। मैं यह भली प्रकार से जानता हूँ कि विद्यार्थी अनुशासन को तभी भंग करते हैं जब उनकी इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं। मैं विद्यालय के अनेक कायाँ में विद्यालयों का सहयोग प्राप्त करता। मैं उन्हें सहकारी समिति बनाने के लिए कहता। वे अपने चुनाव करते और देर से आने वाले विद्यार्थियों के लिए स्वयं ही दंड विधान करते। इस प्रकार वे स्वयं को विद्यालय का अंग मानने लगते तथा ऐसे करके मैं अनुशासन स्थापित करने में सफल हो जाता।
आत्मविश्वास की भावना– यदि मैं अध्यापक होता तो मैं छात्रों की कठिनाइयों का पता लगाता। मैं सहयोगी अध्यापकों से पूछता कि वे किस प्रकार आदर्श शिक्षा देना चाहते हैं ? इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मैं अपनी नीति का ऐसा स्वरूप निश्चित करता जिसमें विद्यार्थी प्रसन्न रहते। इससे उनमें आत्म-विश्वास तथा संतोष की भावना दृढ़ होती है।
आदर्श नागरिक बनने की शिक्षा- मैं जानता हूँ कि आज के बालक कल के नेता होते हैं। अत: राष्ट्र तभी उन्नति कर सकता है जब विद्यालय के बालकों को अच्छी शिक्षा दी जाए। उन्हें राष्ट्र के नेता बनाने के लिए उनके बाल्य जीवन से ही नेतृत्व के गुणों का विकास करना अति आवश्यक है। मैं उनकों आदर्श नागरिक बनने की शिक्षा देता ताकि राष्ट्र उनके नेतृत्व से लाभ उठा सकता।
अपना आदर्श प्रस्तुत करना- मैं उपदेश देश की बजाय अपना आदर्श प्रस्तुत करने पर बल देता। मैं दूसरों को कुछ नहीं कहता और उनकों स्वयं कुछ करके दिखाता। अन्य अध्यापक भी मुझ से प्रेरित होकर कर्मशील हो जाते। चूंकि बालकों में अनुकरण की प्रवृत्ति होती है अत: वे मुझे और अध्यापकों को कार्य में लगे देखकर प्रेरित होते।
उपसंहार- मैं छात्रों के साथ मित्रता का व्यवहार करता। किसी पर भी अनुचित दबाव न डालता। काश ! मैं अध्यापक होता और अपने स्वप्नों को साकार रूप देता।
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Answer: Revealing the laws of nature is called physics.
Explanation: To reveal the laws our nature.
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