yadi Mein Shikshak Hota
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यदि मैं शिक्षक होता, तो सबसे पहले अपने छात्रों को पुस्तकों एक सीमित रखने वाली इस बंधी-बंधाई शिक्षा-पद्धति के घेरे से उन्हें बाहर निकालने का यत्न करता। वास्तविक शिक्षा के लिए उन्हें बंद कक्षा-भवनों से बाहर निकालने की कोशिश भी करता। उन्हें बताता कि हमें प्रकृति की खुली किताब भी खुले मन से पढऩी चाहिए। इसमें मिलने वाली शिक्षा को ही जीवन की सच्ची और वास्तविक शिक्षा मानना चाहिए। क्योंकि हम जिस युग में रह रहे हैं, उनमें परीक्षांए भी पास करनी पड़ती हैं। परीक्षांए पार करने के लिए किताबों का पढऩा जरूरी है, इस कारण में अपने छात्रों को किताबे भी पढ़ाता अवश्य, पर उस बंधे-बंधाए ढंग से नहीं कि जो विषयों का ऊपरी ज्ञान ही कराता है, उनकी तह तक नहीं पहुंचाया करता। तभी तो कुंजियां पढऩे वाले विद्यार्थी ज्यादा चतुर बन जाता है। परीक्षाओं में अंक भी अधिक पा लेता है पर उसे वास्तविक ज्ञान कुछ नहीं होता इस प्रकार स्पष्ट है कि आज की हमारी परीक्षा-प्रणाली भी दोषपूर्ण है। जो विद्यार्थी की वास्तविक योज्यता की जांच नहीं कर पाती। इस कारण यदि मैं शिक्षक होता तो इस बेकार हो चुकी शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ परीक्षा प्रणाली को बदलवाने की भी कोशिश करता।