Hindi, asked by rohitsheikh671, 22 hours ago

yah poem ka Arth
गुन के गाहक सहस नर , बिन गुन लहै न कोय ।।. जैसे कागा - कोकिला , शब्द सुनै सब कोय ।। शब्द सुनै सब कोय , कोकिला सबै सुहावन । दोऊ के एक रंग , काग सब भये अपावन ।। कह गिरिधर कविराय , सुनौ हो ठाकुर मन के ।। बिन गुन लहै न कोय , सहस नर गाहक गुन के ॥ हिनि छि शिकि SIF देखा सब संसार में , मतलब का व्यवहार । जब लगि पैसा गाँठ में , तब लगि ताको यार || तब लगि ताको यार , यार सँग ही सँग डोलै । पैसा रहा न पास , यार मुख से नहि , बोलै ।। कह गिरिधर कविराय , जगत का ये ही लेखा । करत बेगरजी प्रीति , मित्र कोई बिरला देखा ।। झूठा मीठे वचन कहि , ऋण उधार ले जाय । लेत परम सुख ऊपजै , लैके दियो न जाय ।। लैके दियो न जाय , ऊँच अरु नीच बतावै । ऋण उधार की रीति , माँगते मारन धावै ।। कह गिरिघर कविराय , जानि रहै मन में रूठा । बहुत दिना हो जाय , कहै तेरो कागज झूठा ।।​

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Answered by rohitsharmabp56
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