Yah rahim nij sang lai, janmat jagat na koy | bair, preeti, abhyas, jas hot hot hi hoy || meaning of its
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प्रेम, अभ्यास तथा यश की वृद्धि समय के साथ धीरे- धीरे ही होती है। ये कोई भी जन्म के साथ लेकर नहीं होता है।
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यह ‘रहीम’ निज संग लै, जनमत जगत् न कोय ।
बैर, प्रीति, अभ्यास, जस होत होत ही होय ॥
कविवर रहीम जी कहते हैं कि प्रीति, अभ्यास और प्रतिष्ठा में धीरे धीरे ही वृद्धि होती है। इनका क्रमिक विकास की अवधि दीर्घ ( लंबा समय ) होती है क्योंकि कोई भी आदमी यह सब कुछ जन्म के साथ नहीं लेकर आता। इन सभी का स्वरूप आदमी के व्यवहार, साधना और और आचरण के परिणाम के अनुसार उसके सामने आता है।
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