यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।
कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे?
निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है!
धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।
बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता य
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जीवन एक drama की तरह है।
इसलिए मुझे नफरत है जीवन से
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प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि यह जीवन क्या है? इस जीवन को जीवंत मस्ती रखती है। सुख और दुख जिंदगी के दोनों किनारे साथ साथ चलते हैं।
जिस तरह पानी पर्वत से निकलकर नीचे की ओर बहते हुए समतल घाटी में आ जाता है उसकी निरंतर गति है। उस पानी के साथ साथ अनेकों जीवो के जीवन पलते हैं मैं पानी आगे ही बढ़ता जाता है ऐसा लगता है मानो उसे सिर्फ आगे बढ़ने की ही धुन है वह अपनी मस्ती में ही चलता रहता है उसके रास्ते में भी अनेक बाधाएं हैं वह हर बाधा से लड़ता हुआ आगे बढ़ता है|
कभी चट्टान से टकराता है, कभी जंगल से टकराता है लेकिन वह अपना रास्ता खुद चुन लेता है। ठीक उसी पानी की तरह ही हमारा जीवन है जिसके रास्ते में अनेक बाधाएं हैं हमें हर बाधा को पार करके आगे ही बढ़ना है।
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