यह पंक्तियां काका कालेलकर द्वारा लिखित यात्रात्मक संस्मरण "यामुन ऋषि" से ली गई है। इसका अर्थ समझाइए।
इस स्थान पर जमुनाजी ऐसी लगती है मानो कोई दोहरे हाड़ की मजबूत काठी वाली सोलह-सत्रह वर्ष की सुन्दर निरालस बाला यौवन के मान के अभाव में दौड़ती, उछलती, कूदती, पैंजनियों और धुंघरुओं के नाद की धुन में सारी दुनिया को भूल रही थी जब हम पहाड़ से उतरकर नीचे आए तो उसके विविध रंगो वाले निर्मल जल का दर्शन हुआ। कभी वह नीली काली स्याही सरीखा दिखाई देता है, तो कभी जब पत्थरों से बहता है तो नीले धूप के रंग का हो जाता है। जब लहरें पत्थर पर टूट-टूक होकर हँस पड़ती है तब बिल्कुल वह शुभ्र बन जाता है और तिस पर उसे पुनः नील गम्भीर होते देर नहीं लगती।
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यह पंक्तियां काका कालेलकर द्वारा लिखित यात्रात्मक संस्मरण "यामुन ऋषि" से ली गई है। इसका अर्थ समझाइए।
इस स्थान पर जमुनाजी ऐसी लगती है मानो कोई दोहरे हाड़ की मजबूत काठी वाली सोलह-सत्रह वर्ष की सुन्दर निरालस बाला यौवन के मान के अभाव में दौड़ती, उछलती, कूदती, पैंजनियों और धुंघरुओं के नाद की धुन में सारी दुनिया को भूल रही थी जब हम पहाड़ से उतरकर नीचे आए तो उसके विविध रंगो वाले निर्मल जल का दर्शन हुआ। कभी वह नीली काली स्याही सरीखा दिखाई देता है, तो कभी जब पत्थरों से बहता है तो नीले धूप के रंग का हो जाता है। जब लहरें पत्थर पर टूट-टूक होकर हँस पड़ती है तब बिल्कुल वह शुभ्र बन जाता है और तिस पर उसे पुनः नील गम्भीर होते देर नहीं लगती।
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