यहां प्रथम मानव ने खोले निंदिया रे लोचन अपने भाव स्पष्ट कीजिए
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यहाँ प्रथम मानव ने खोले, निंदियारे लोचन अपने, इसी नभ तले उसने देखे, शत-शत नवल सृजन सपने, यहाँ उठे 'स्वाहा' के स्वर और, यहाँ 'स्वधा' के मंत्र बने, ऐसा प्यारा देश पुरातन, ज्ञान-निधान हमारा है। ... इनसे प्लावित देश हमारा, यह रसखान हमारा है।
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iska bhav yah hai ki subah manava uthate hi apni nind kholta hai hai taki vah aalsya ko bhaga sake
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