यह सुनकर विधवा ने कहा, "मालिक, नाराज न हो, आपसे एक टोकरी पर मिट्टी तो
उठाई नहीं जाती और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप
जन्म-भर क्योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।"
जमींदार धन मद से गर्वित हो अपना कर्तव्य भूल गए थे, पर विधवा के उपरोक्त वचन
सुनते ही उनकी आँखें खुल गईं। कृतकर्म का पश्चाताप कर उन्होंने विधवा से क्षमा माँगी और
उसे उसकी झोंपड़ी वापस दे दी।
-माधवराव सप्रेक
• पश्चाताप
अर्थ जाने
कृतकर्म - किया हुआ काम
धन का नशा
धन-मद
लेखक परिचय
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यह सुनकर विधवा ने कहा, "स्वामी, क्रोधित मत हो, आपके पास एक टोकरी में मिट्टी है।"
नहीं उठाया गया और हजारों झोंपड़ियों को इस झोपड़ी में दफनाया गया। उसका भार
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