यह संस्कृत में है , इसका अर्थ हिंदी में दें!
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत I
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम II
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम I
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे II
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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
जब विश्व में वैदिक धर्म की स्थिति काफी खराब थी और लोग वेद, वेदांत और परमात्मा में कोई आस्था नहीं रखते थे। धर्म में विश्वास रखने वाले लोग के जीवन में निरंतर कमी आ रही थी। जीवन बद से बद्तर होता जा रहा था और ऐसे में जरूरत आई धरती पर ईश्वर के आगमन की। लोगों के जीवन के उत्थान के लिए ईश्वर यानि कृष्ण भगवान ने मानव रूप में जन्म लिया। श्रीकृष्ण के मानव अवतार ने संसार का उद्धार किया।यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने उपदेशों की शुरुआत नवग्रहों में प्रथम सूर्यदेव से की जिसमे उन्होंने सूर्यदेव को सनातन धर्म की शिक्षा दी। इस प्रकार सूर्य देव के बच्चे और उनके वंशजों ने सनातन धर्म अपनाया। द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को धर्म और अधर्म का महत्व समझाने के लिए सनातन धर्म की शिक्षा और गीता के उपदेश दिए। महाभारत काल में भगवान ने नर रूप में अर्जुन को यह शिक्षा दी। भगवान ने अर्जुन को माया के भ्रम जाल में डालकर उसको अपनी असलियत का पता चलने नहीं दिया।यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
इससे अर्जुन को भगवान कृष्ण की शिक्षाओं के बारे में शंकायें पैदा होने लगीं। अपने संदेह को व्यक्त करते हुए वह श्रीकृष्णजी से पूछते है:- मूल श्लोकः यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मासंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
यह श्लोक श्रीमद् भगवद्गीता वस्तुतः महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है; इसके 18 अध्याय भीष्मपर्व के क्रमशः अध्याय 25 से 42 हैं अर्थ - हे अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ। भावार्थ - हे पार्थ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।
Answer:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम् सृज्यहम् हर्मि नुकसान
परित्राणाय साधुनाम् विनाश्य च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थपार्थाय सम्भवमी यगे युगे द्वितीय
आशा है कि यह आपकी मदद करता है
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