१) यह संसार कैसा है?
Answers
Hey mate,
जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखि तैसी ||
व्याख्या: किसी भी जीव को यह संसार अपनी इन्द्रियों के माध्यम से अनुभूत होता है | प्रथमतय जानकारी को इन्द्रियां हमारे मष्तिष्क तक पहुचाती है | फिर मस्तिष्क उस सन्दर्भ में समस्त जानकारियां, जो की पूर्व में जमा की गयी थी, इक्कठा कर के मन के पटल पर रख देता है | अब बुद्धि यह तुलना करती है कि यह क्या है कैसा है ? मन लीजिये किसी जानकारी के बारे में हमारे मस्तिष्क में कोई भी जानकारी नहीं है तो उस सन्दर्भ में मन न उसे अच्छा न बुरा निर्धारित कर पायेगा | वस्तुत: बिना तुलना के न तो कोई अच्छा न बुरा न बड़ा न छोटा | सिर्फ होना भर है | हमे यह संसार हमारी पूर्व में जमा की गयी जानकारी के अनुसार ही नजर आता है | जिसके मन में दूसरों को नुकसान पहुँचाना सकारात्मक जानकारी के रूप में दर्ज है तो उसे यह कर्म अच्छा लगेगा और यह उसके लिए स्वाभाविक भी होगा | परन्तु, सत्य यह है कि यह संसार एक तेजोमय तत्त्व (परमात्मा) से बना है जो विभिन्न पदार्थों के माध्यम से खुद को प्रकट करता है | यह उर्जा और पदार्थ के बीच खेला जाने वाला खेल ही माया है (E=mc2) | क्यूंकि हमारी इन्द्रियों की क्षमता सिर्फ कुछ आयामों तक ही कार्यरत है अत: हमे समझ भी वहीँ तक आता है | तो जैसा हमारा भाव वैसा हमारा जगत ||