Hindi, asked by nileshkumarkaushik08, 6 months ago

यह तन जालौं मसि करौं, लिखौराम का नाऊँ
लेखनि करूँ करंक की, लिखि लिखि राम पठाऊँ
चकई बिछुरी रैनि की आइ मिले परभाति ।
जो नर बिछुरे राम सौ ते दिन मिले न राति।।
अथ​

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Answered by shishir303
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कबीर के इन दोहों का अर्थ इस प्रकार है...

यह तन जालौं मसि करौं, लिखौराम का नाऊँ।

लेखनि करूँ करंक की, लिखि लिखि राम पठाऊँ।।

अर्थ ⦂ कबीर ईश्वर को अपना प्रियतम मानकर और स्वयं को प्रेमिका मानकर कहते हैं, कि इस तन को जलाकर मैं उसकी राख से स्याही बना लूंगी और जो कंकाल रह जाएगा, उससे मैं लेखनी तैयार कर लूंगी। उस लेखनी से प्रेम की पाती लिख लिखकर अपने प्यारे राम अर्थात ईश्वर को भेजती रहूँगी। मेरे अपने प्रियतम को संदेश ऐसे होंगे।

चकवी बिछुटी रैणि की, आइ मिली परभाति।

जे जन बिछूटे राम सूँ, ते दिन मिले न राति।।

अर्थ ⦂ कबीरदास कहते हैं चकवा और चकवी पक्षी यदि रात को एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं तो सुबह होने पर उन का मिलन हो जाता है, लेकिन जो लोग ईश्वर से बिछड़ चुके हैं, वह ना तो रात दिन में मिल सकते और ना ही रात में।

कबीर दास का मानना है कि संसार के मोह माया में फँस कर जीवात्मा परमात्मा से विमुख हो जाती है। यह भ्रम का मायाजाल कुछ ऐसा होता है जो जीवात्मा को ईश्वर के भक्ति मार्ग पर चलने से रोकता है। इसलिए कबीर कहते हैं कि जीवात्मा को हमेशा ईश्वर के नाम का सिमरन करते रहना चाहिए ताकि वह मोह माया के जाल से मुक्त हो सके और उसका प्रभु से मिलन हो जाए।

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