यह तन काचा कुंभ है, लियाँ फिरै था साथि।
ढबका लागा फुटि गया, कडू न आया हाथि ॥ १४॥
कबीर कहा गरबियौ, देही देखि सुरंग।
बोछड़ियाँ मिलिबौ नहीं, ज्यूँ काँचली भुजंग॥ १५ ॥
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भावार्थ: यह शरीर कच्चा घड़ा है जिसे तू साथ लिए घूमता फिरता था।जरा-सी चोट लगते ही यह फूट गया। कुछ भी हाथ नहीं आया।
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