Hindi, asked by akiraaakhya8877, 9 months ago

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान कबीर ने शरीर को ‘विष की बेल’ क्यों कहा है?

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Answered by bhatiamona
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यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान कबीर ने शरीर को ‘विष की बेल’

यह कबीर दास जी का एक प्रसिद्ध दोहा है। इस दोहे में कबीर दास जी ने तन को विष की मेल इसलिए कहा है, क्योंकि कबीर दास जी के अनुसार यह तन विष की बेल के समान है। क्योंकि इस बेल रूपी तन पर विषय वासनाओं के फल लगते हैं। ये विषय-वासनाओं के फल हैं, काम-क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, राग-द्वेष, ईर्ष्या, लालच आदिi फल लगते हैं। इन फलों के सेवन करने से प्राणी हमेशा दुखी ही रहता है और परेशान रहता है। यह विषैले फल है और वह इनकी मोह माया में पढ़कर जन्म-मरण के बंधन से मुक्त नहीं हो पाता और इस संसार के माया जाल में उलझा रहता है।

कबीरदास जी कहते हैं, यह शरीर तो क्षणभंगुर है। इसका कोई मूल्य नहीं है। मूल्य है तो आत्मा का। उस आत्मा को गुरु चरणों में लगाओ। गुरु अमृत की खान है जो अमृत रूपी ज्ञान से इन विषय वासना रूपी विकारों से आपको दूर करेंगे और उस परमपिता परमात्मा के दर्शन कराएंगे। इसलिए यह तन विष की बेल के समान है और गुरु अमृत की खान के समान है।

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