यह धरती कितना देती है
उपन में बोए गए पैसे से एक भी अंकुर न फूटने पर कवि का बाल-मन उदास हो गया, परतु उसी
नी में सेम के बीज बोने पर अनगिनत हरी-भरी लताएँ उभर आई। सेम की लताएँ इसकी फलियों
नद गई। कवि को विश्वास हो गया कि धरती स्वार्थ नहीं, परमार्थ की सुनहली फसलें उगलती है।
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यह धरती कितना देती है
उपन में बोए गए पैसे से एक भी अंकुर न फूटने पर कवि का बाल-मन उदास हो गया, परतु उसी
नी में सेम के बीज बोने पर अनगिनत हरी-भरी लताएँ उभर आई। सेम की लताएँ इसकी फलियों
नद गई। कवि को विश्वास हो गया कि धरती स्वार्थ नहीं, परमार्थ की सुनहली फसलें उगलती है।
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