'यमक अलंकार' ढूंढिए :-
मानसरोवर सुभर जल , हंसा केलि कराहिं |
मुकताफल मुकता चुगैं , अब उड़ि अनत न जाहिर ।
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यमक अलंकार' ढूंढिए :-
मानसरोवर सुभर जल , हंसा केलि कराहिं |
मुकताफल मुकता चुगैं , अब उड़ि अनत न जाहिर ।
यमक अलंकार जब वाक्य या कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है।
इस दोहे में यमक अलंकार इस तरह होगा। यमक अलंकार की परिभाषा के अनुसार जब इसी काव्य में किसी शब्द की दो बार आवृत्ति हो, लेकिन दोनों शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता है तो वहां पर यमक अलंकार होता है।
इस काव्य में इन पंक्तियों में मुक्ता फल और मुक्ता का अर्थ अलग अलग है। पहले मुक्ता का अर्थ मोती से है, दूसरे मुक्ता का अर्थ संतों से है, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त हैं।
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मुक्ताफल चुगने का क्या आशय है?
मानसरोवर सुभग जल हंसा केलि कराहि
मुकताफल मुकता चुगै अब उड़ी अनत न जाही।
( इस पूरे दोहे में रूपक अलंकार है | )
दोहे का अर्थ :- प्रस्तुत साखी के माध्यम से कबीर नें जीवात्मा और परमात्मा के सम्बन्धों को उद्घाटित किया है | जिस तरह से मानसरोवर में हंस खेलते हैं और मोती चुगते हैं और वहाँ के सुख को छोड़कर कहीं नहीं जाते हैं, उसी तरह मनुष्य जीवन के मोह जाल में फंस जाता है और हमेशा इसी दुनिया में रहना चाहता है। अर्थात मन रूपी सरोवर भक्ति से भरा है जिससे हंस रूपी जीवात्मा क्रीडा कर रहा है | वह मुक्ति रूपी फल खाने के पशचात और कहीं नहीं जाना चाहता है |
रूपक अलंकार की परिभाषा :-
जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है। रूपक अलंकार अर्थालंकारों में से एक है। रूपक अलंकार में उपमान और उपमेय में कोई अंतर नहीं दिखायी पड़ता है।