यशोधर बाबू ने सिल्वर वैडिंग की पार्टी के लिए अपने कार्यालय के कर्मचारियों को कुल कितने रुपए दिए?
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यशोधर बाबू बचपन से ही जिम्मेदारियों के बोझ से लद गए थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। उनका पालन-पोषण उनकी विधवा बुआ ने किया। मैट्रिक होने के बाद वे दिल्ली आ गए तथा किशन दा जैसे कुंआरे के पास रहे। इस तरह वे सदैव उन लोगों के साथ रहे जिन्हें कभी परिवार का सुख नहीं मिला। वे सदैव पुराने लोगों के साथ रहे, पले, बढ़े। अत: उन परंपराओं को छोड़ नहीं सकते थे। उन पर किशन दा के सिद्धांतों का बहुत प्रभाव था। इन सब कारणों से यशोधर बाबू समय के साथ बदलने में असफल रहते हैं। दूसरी तरफ, उनकी पत्नी पुराने संस्कारों की थीं। वे एक संयुक्त परिवार में आई थीं जहाँ उन्हें सुखद अनुभव हुआ। उनकी इच्छाएँ अतृप्त रहीं। वे मातृ सुलभ प्रेम के कारण अपनी संतानों का पक्ष लेती हैं और बेटी के अंगु एकपाई पहात हैं। वे बेयों के किसी मामले में दल नाहीं देता। इस प्रकर वे स्वायं को शीघ्र ही बदल लेती है।