यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता।
नयविक्रमसंयोगस्तत्र श्रीरचला ध्रुवम्।। 5।।
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मई आई एक्ष्पोऐं यू
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येस ओर नो
इफ येस मार्क मे अस ब्रैंलीस्त
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