यदि भारत में गेहूं की उपज और दुनिया में गेहूं की उपज का अनुपात 15:75 हो तो भारत के बाहर कुल उपज का कितना प्रतिशत गेहूं है
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Answer:
भारत में गेहूँ एक मुख्य फसल है। गेहूँ का लगभग 97% क्षेत्र सिंचित है। गेहूँ का प्रयोग मनुष्य अपने जीवनयापन हेतु मुख्यत रोटी के रूप में प्रयोग करते हैं, जिसमे प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। भारत में पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश मुख्य फसल उत्पादक क्षेत्र हैं।
प्रमुख प्रजातियाँ
गेहूँ की प्रजातियों का चुनाव भूमि एवं साधनों की दशा एवं स्थित के अनुसार किया जाता है, मुख्यतः तीन प्रकार की प्रजातिया होती है सिंचित दशा वाली, असिंचित दशा वाली एवं उसरीली भूमि की, आसिंचित दशा वाली प्रजातियाँ निम्न हैं-
असिंचित दशा
इसमें मगहर के 8027, इंद्रा के 8962, गोमती के 9465, के 9644, मन्दाकिनी के 9251, एवं एच डी आर 77 आदि हैं।
सिंचित दशा
सिंचित दशा वाली प्रजातियाँ सिंचित दशा में दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती हैं, एक तो समय से बुवाई के लिए-
इसमें देवा के 9107, एच पी 1731, राजश्य लक्ष्मी, नरेन्द्र गेहूँ1012, उजियार के 9006, डी एल 784-3, (वैशाली) भी कहतें हैं, एचयूडब्लू468, एचयूडब्लू510, एच डी2888, एच डी2967, यूपी 2382, पी बी डब्लू443, पी बी डब्लू 343, एच डी 2824 आदि हैं। देर से बुवाई के लिए त्रिवेणी के 8020, सोनाली एच पी 1633 एच डी 2643, गंगा, डी वी डब्लू 14, के 9162, के 9533, एचपी 1744, नरेन्द्र गेहूँ1014, नरेन्द्र गेहूँ 2036, नरेन्द्र गेहूँ1076, यूपी 2425, के 9423, के 9903, एच डब्लू2045,पी बी डब्लू373,पी बी डब्लू 16 आदि हैं।
उसरीली भूमि के लिए-
के आर एल 1-4, के आर एल 19, लोक 1, प्रसाद के 8434, एन डब्लू 1067, आदि हैं, उपर्युक्त प्रजातियाँ अपने खेत एवं दशा को समझकर चयन करना चाहिए।
जलवायु एवं भूमि की आवश्यकता
गेहूँ की खेती के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त माना जाता है, गेहूँ की खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है गेहूँ की खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट,भारी दोमट, मटियार तथा मार एवं कावर भूमि में की जा सकती है। साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूँ की खेती की जा सकती है।
खेत की तैयारी
गेहूँ की बुवाई अधिकतर धान की फसल के बाद ही की जाती है, पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताईयां करके खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए, डिस्क हैरो से धान के ढूंठे कट कर छोटे छोटे टुकड़ों में हो जाते हैं: इन्हें शीघ्र सड़ाने के लिए 20-25 कि०ग्रा० यूरिया प्रति हैक्टर कि दर से पहली जुताई में अवश्य दे देनी चाहिए। इससे ढूंठे, जड़ें सड़ जाती हैं ट्रैक्टर चालित रोटावेटर से एक ही जुताई द्वारा खेत पूर्ण रूप से तलैयार हो जाता है।
बीजदर और बीज शोधन
गेहूँकि बीजदर लाइन से बुवाई करने पर 100 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर तथा मोटा दाना 125 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर तथा छिड़काव से बुवाई कि दशा से 125 कि०ग्रा० सामान्य तथा मोटा दाना 150 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर कि दर से प्रयोग करते हैं, बुवाई के पहले बीजशोधन अवश्य करना चाहिए बीजशोधन के लिए बाविस्टिन, काबेन्डाजिम कि 2 ग्राम मात्रा प्रति कि०ग्रा० कि दर से बीज शोधित करके ही बीज की बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई विधि
गेहूँ की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करनी चाहिए अंन्यथा उपज में कमी हो जाती है। जैसे-जैसे बुवाई में बिलम्ब होता है वैसे-वैसे पैदावार में गिरावट आती जाती है, गेहूँ की बुवाई सीड्रिल से करनी चाहिए तथा गेहूँ की बुवाई हमेशा लाइन में करें। सयुंक्त प्रजातियों की बुवाई अक्तूबर के प्रथम पक्ष से द्वितीय पक्ष तक उपयुक्त नमी में बुवाई करनी चाहिए, अब आता है सिंचित दशा इसमे की चार पानी देने वाली हैं समय से अर्थात 15-25 नवम्बर, सिंचित दशा में ही तीन पानी वाली प्रजातियों के लिए 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक उचित नमी में बुवाई करनी चाहिए और सिंचित दशा में जो देर से बुवाई करने वाली प्रजातियाँ हैं वो 15-25 दिसम्बर तक उचित नमी में बुवाई करनी चाहिए, उसरीली भूमि में जिन प्रजातियों की बुवाई की जाती है वे 15 अक्टूबर के आस पास उचित नमी में बुवाई अवश्य कर देना चाहिए, अब आता है किस विधि से बुवाई करें गेहूँ की बुवाई देशी हल के पीछे लाइनों में करनी चाहिए या फर्टीसीड्रिल से भूमि में उचित नमी पर करना लाभदायक है, पंतनगर सीड्रिल बीज व खाद सीड्रिल से बुवाई करना अत्यंत लाभदायक है।
उर्वरकों का प्रयोग
किसान भाइयों उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए, गेहूँ की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 150 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हैक्टर तथा देर से बुवाई करने पर 80 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश, अच्छी उपज के लिए 60 कुंतल प्रति हैक्टर सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। गोबर की खाद एवं आधी नत्रजन की मात्रा तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई में या बुवाई के समय खाद का प्रयोग करना चाहिए, शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई पर तथा बची शेष मात्रा दूसरी सिंचाई पर प्रयोग करनी चाहिए
Step-by-step explanation:
भारत में गेहूँ एक मुख्य फसल है। गेहूँ का लगभग 97% क्षेत्र सिंचित है। गेहूँ का प्रयोग मनुष्य अपने जीवनयापन हेतु मुख्यत रोटी के रूप में प्रयोग करते हैं, जिसमे प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। भारत में पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश मुख्य फसल उत्पादक क्षेत्र हैं।
प्रमुख प्रजातियाँ
गेहूँ की प्रजातियों का चुनाव भूमि एवं साधनों की दशा एवं स्थित के अनुसार किया जाता है, मुख्यतः तीन प्रकार की प्रजातिया होती है सिंचित दशा वाली, असिंचित दशा वाली एवं उसरीली भूमि की, आसिंचित दशा वाली प्रजातियाँ निम्न हैं-
असिंचित दशा
इसमें मगहर के 8027, इंद्रा के 8962, गोमती के 9465, के 9644, मन्दाकिनी के 9251, एवं एच डी आर 77 आदि हैं।
सिंचित दशा
सिंचित दशा वाली प्रजातियाँ सिंचित दशा में दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती हैं, एक तो समय से बुवाई के लिए-
इसमें देवा के 9107, एच पी 1731, राजश्य लक्ष्मी, नरेन्द्र गेहूँ1012, उजियार के 9006, डी एल 784-3, (वैशाली) भी कहतें हैं, एचयूडब्लू468, एचयूडब्लू510, एच डी2888, एच डी2967, यूपी 2382, पी बी डब्लू443, पी बी डब्लू 343, एच डी 2824 आदि हैं। देर से बुवाई के लिए त्रिवेणी के 8020, सोनाली एच पी 1633 एच डी 2643, गंगा, डी वी डब्लू 14, के 9162, के 9533, एचपी 1744, नरेन्द्र गेहूँ1014, नरेन्द्र गेहूँ 2036, नरेन्द्र गेहूँ1076, यूपी 2425, के 9423, के 9903, एच डब्लू2045,पी बी डब्लू373,पी बी डब्लू 16 आदि हैं।
उसरीली भूमि के लिए-
के आर एल 1-4, के आर एल 19, लोक 1, प्रसाद के 8434, एन डब्लू 1067, आदि हैं, उपर्युक्त प्रजातियाँ अपने खेत एवं दशा को समझकर चयन करना चाहिए।
जलवायु एवं भूमि की आवश्यकता
गेहूँ की खेती के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त माना जाता है, गेहूँ की खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है गेहूँ की खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट,भारी दोमट, मटियार तथा मार एवं कावर भूमि में की जा सकती है। साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूँ की खेती की जा सकती है।
खेत की तैयारी
गेहूँ की बुवाई अधिकतर धान की फसल के बाद ही की जाती है, पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताईयां करके खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए, डिस्क हैरो से धान के ढूंठे कट कर छोटे छोटे टुकड़ों में हो जाते हैं: इन्हें शीघ्र सड़ाने के लिए 20-25 कि०ग्रा० यूरिया प्रति हैक्टर कि दर से पहली जुताई में अवश्य दे देनी चाहिए। इससे ढूंठे, जड़ें सड़ जाती हैं ट्रैक्टर चालित रोटावेटर से एक ही जुताई द्वारा खेत पूर्ण रूप से तलैयार हो जाता है।
बीजदर और बीज शोधन
गेहूँकि बीजदर लाइन से बुवाई करने पर 100 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर तथा मोटा दाना 125 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर तथा छिड़काव से बुवाई कि दशा से 125 कि०ग्रा० सामान्य तथा मोटा दाना 150 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर कि दर से प्रयोग करते हैं, बुवाई के पहले बीजशोधन अवश्य करना चाहिए बीजशोधन के लिए बाविस्टिन, काबेन्डाजिम कि 2 ग्राम मात्रा प्रति कि०ग्रा० कि दर से बीज शोधित करके ही बीज की बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई विधि
गेहूँ की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करनी चाहिए अंन्यथा उपज में कमी हो जाती है। जैसे-जैसे बुवाई में बिलम्ब होता है वैसे-वैसे पैदावार में गिरावट आती जाती है, गेहूँ की बुवाई सीड्रिल से करनी चाहिए तथा गेहूँ की बुवाई हमेशा लाइन में करें। सयुंक्त प्रजातियों की बुवाई अक्तूबर के प्रथम पक्ष से द्वितीय पक्ष तक उपयुक्त नमी में बुवाई करनी चाहिए, अब आता है सिंचित दशा इसमे की चार पानी देने वाली हैं समय से अर्थात 15-25 नवम्बर, सिंचित दशा में ही तीन पानी वाली प्रजातियों के लिए 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक उचित नमी में बुवाई करनी चाहिए और सिंचित दशा में जो देर से बुवाई करने वाली प्रजातियाँ हैं वो 15-25 दिसम्बर तक उचित नमी में बुवाई करनी चाहिए, उसरीली भूमि में जिन प्रजातियों की बुवाई की जाती है वे 15 अक्टूबर के आस पास उचित नमी में बुवाई अवश्य कर देना चाहिए, अब आता है किस विधि से बुवाई करें गेहूँ की बुवाई देशी हल के पीछे लाइनों में करनी चाहिए या फर्टीसीड्रिल से भूमि में उचित नमी पर करना लाभदायक है, पंतनगर सीड्रिल बीज व खाद सीड्रिल से बुवाई करना अत्यंत लाभदायक है।
उर्वरकों का प्रयोग
किसान भाइयों उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए, गेहूँ की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 150 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हैक्टर तथा देर से बुवाई करने पर 80 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश, अच्छी उपज के लिए 60 कुंतल प्रति हैक्टर सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। गोबर की खाद एवं आधी नत्रजन की मात्रा तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई में या बुवाई के समय खाद का प्रयोग करना चाहिए, शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई पर तथा बची शेष मात्रा दूसरी सिंचाई पर प्रयोग करनी चाहिए।
गेहूँ की फसल में खरपतवार नियंत्रण
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