यथा हि एकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिध्यति।।इन शब्दों का मीनिंग
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जैसे एक चक्र से किसी रथ को गति नहीं मिलती उसी प्रकार परिश्रम करें बिना किसी का भाग्य नहीं खुलता
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अन्वयः- जैसा कि ऐकेन रथस्य गति में होता है: न भावेत/और पुरुषकरण के बिना दैवन और न ही सिद्ध्याति।
शत्रु भोजन के आदी हो जाते हैं
राजदारे शमशाने च यः तिष्ठति स... अन्वयः- उत्सवे, व्यासने प्रपते, दुर्भिक्ष, शत्रुसंकते, राजद्वारा, शमशान चा याः तिष्टती साः (और)
बांधव: (अस्ति)।
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