यदि जीवन में चौहान ना होते तो क्या होता है इससे
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निर्मला का जीवन बहुत निर्मल था. वह दूसरों के आचरण को सदा भलाई की ही नज़र से देखती. यदि कोई उसके साथ बुराई भी करने आता तो निर्मला यही सोचती, कदाचित उद्देश्य बुरा न रहा हो; भूल से ही उसने ऐसा किया हो.
पतितों के लिए भी उसका हृदय उदार और क्षमा का भंडार था. यदि वह कभी किसी को कोई अनुचित काम करते देखती, तो भी वह उसका अपमान या तिरस्कार कभी न करती. प्रत्युत मधुरतर व्यवहारों से ही यह उन्हें समझाने और उनकी भूल को उन्हें समझा देने का प्रयत्न करती. कठोर वचन कह के किसी का जी दुखाना निर्मला ने सीखा ही न था.
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