यदि किसी में बड़प्पन की कमी हो तो उसके कुल की बड़ाई काम नहीं देती ।”
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बडे़ बड़ाई ना करे बड़े न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहै लाख टका है मोल।
बड़े लोग अपनी बड़ाई स्वयं कभी नहीं करते। वे बढ चढ कर कभी नही बोलते हैं।
हीरा स्वयं कभी अपने मुॅह से नही कहता कि उसका मूल्य लाख रूपया है ।
कहु रहीम केतिक रही केतिक गई विहाय
माया ममता मोह परि अंत चले पछिताय ।
अब कितना जीबन बचा है और कितना हमने नस्ट कर दिया इस पर विचार करें ।
माया ममता और मोह में पड़कर अंततः हमें मृत्यु के समय पछताना पड़ता है ।
जो बडेन को लघु कहे नहि रहीम घटि जाहि
गिरिधर मुरलीधर कहे कछु दुख मानत नाहि ।
किसी बड़े को छोटा कहने से वह छोटा नही हो जाता ।गिरिधर कृश्ण को मुरलीधर
कहने से उनका महत्व कम नही हो जाता है ।बड़ा सर्वदा बड़ा हीं रहता है ।
धन थोडो इज्जत बडी कह रहीम की बात
जैसे कुल की कुलवधू चिथरन माहि समान।
धन की अपेक्षा प्रतिश्ठा का महत्व अधिक है ं।खानदानी कुलबधु अगर फटे चिथड़ंेा
में भी रहती है तो वह अपनी इज्जत और मर्यादा से अपने कुल की प्रतिश्ठा को बढा
देती हैं ं।
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