यदि किसी नीति निर्देशक तत्व के परिवर्तन के लिए कोई ऐसा कानून पारित किया जाता है इसमें अधिकारों की भावना की अवहेलना होती है तो उस कानून की क्या स्थिति होगी
Answers
Explanation:
किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य के नीति निर्देशक तत्व (directive principles of state policy) जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व हैं। सबसे पहले ये आयरलैंड के संविधान मे लागू किये गये थे। ये वे तत्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए है। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) की स्थापना करना है।[1]
किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य के नीति निर्देशक तत्व (directive principles of state policy) जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व हैं। सबसे पहले ये आयरलैंड के संविधान मे लागू किये गये थे। ये वे तत्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए है। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) की स्थापना करना है।[1]भारतीय संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्व शामिल किए गये हैं। भारतीय संविधान के भाग 3 तथा 4 मिलकर संविधान की आत्मा तथा चेतना कहलाते है इन तत्वों में संविधान तथा सामाजिक न्याय के दर्शन का वास्तविक तत्व निहित हैं। निदेशक तत्व कार्यपालिका और विधायिका के वे तत्व हैं, जिनके अनुसार इन्हे अपने अधिकारों का प्रयोग करना होता है।
किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य के नीति निर्देशक तत्व (directive principles of state policy) जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व हैं। सबसे पहले ये आयरलैंड के संविधान मे लागू किये गये थे। ये वे तत्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए है। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) की स्थापना करना है।[1]भारतीय संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्व शामिल किए गये हैं। भारतीय संविधान के भाग 3 तथा 4 मिलकर संविधान की आत्मा तथा चेतना कहलाते है इन तत्वों में संविधान तथा सामाजिक न्याय के दर्शन का वास्तविक तत्व निहित हैं। निदेशक तत्व कार्यपालिका और विधायिका के वे तत्व हैं, जिनके अनुसार इन्हे अपने अधिकारों का प्रयोग करना होता है।अनु 37 के अनुसार ये तत्व किसी न्यायालय मे लागू नही करवाये जा सकते यह तत्व वैधानिक न होकर राजनैतिक स्वरूप रखते है तथा मात्र नैतिक अधिकार रखते है। वे न तो कोई वैधानिक बाध्यता ही राज्य पे लागू करते है न जनता हेतु अधिकार कर्तव्य। वे मात्र राज्य के लिये ऐसे सामान्य निर्देश है कि राज्य कुछ ऐसे कार्य करे जो राज्य की जनता के लिये लाभदायक हो। इन निर्देशों का पालन कार्यपालिका की नीति तथा विधायिका की विधियाँ से हो सकता है।