यदि लोकतंत्र न होता
हिंदी निबंध लेखन
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यदि लोकतन्त्र नहीं होता।
व्यक्ति की सभ्यता के साथ ही राज्य का जन्म हो गया था। व्यक्ति की प्रथम आवश्यकता उसकी सुरक्षा एवं उसके मूलभूत मानवीय अधिकार हैं। इसके लिए ही व्यक्ति ने राज्य जैसी संस्था को जन्म दिया होगा। राज्य के शासन का स्वरूप आदिकाल से ही परिवर्तित होता आया हैं। कभी यह साम्यवादी स्वरूप रहा तो कभी राजतन्त्र, गणतन्त्र, अधिनायकत्व, तानाशाही आदि विभिन्न स्वरूपों में सामने आता रहा हैं। लेकिन राज्य के शासन का लोकतन्त्र स्वरूप वर्तमान में स्वस्वीकार्य हैं।
शासन के हर स्वरूप की अपनी कमजोरियां एवं अच्छाइयां होती हैं। पर यदि हम कल्पना करें कि लोकतन्त्र न होता तो-
लोकतन्त्र व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतन्त्र को महत्व देता हैं। व्यक्ति की स्वतन्त्रता लिए लोकतन्त्र से बेहतर कोई शासन नहीं हो सकता हैं।
लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। अन्य किसी शासनतन्त्र का आधार लोककल्याण नहीं हो सकता।
व्यक्ति के मूल अधिकारों का संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। यह समानता, स्वतन्त्रता और सामाजिक आर्थिक न्याय की स्थापना के लिए आवश्यक हैं।
कमजोर और निम्न वर्ग को संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
अवसर की समता और आर्थिक न्याय की स्थापना लोकतन्त्र के बिना संभव नहीं थी।
शासन की शक्तियों का विकेन्द्रीकरण लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
शक्ति पृथ्थकरण का सिद्धान्त जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में शक्तियों का विभाजन लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
इस प्रकार यदि लोकतन्त्र न होता तो हम इन सभी संवैधानिक और मानवीय मूल्यों से वंचित होना पड़ता।