Hindi, asked by piyushkhanduri07, 3 months ago

यदि मे चाँद की यात्रा करता पर निबंध लिके​

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Answered by Hashwanthickka
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प्रातःकाल का समय था ।मेरे फोन की घंटी बजी । मै अभी बिस्तर पर था। घंटी की आवाज सुन सोचने लगा, किस नामुराद ने नीद मे खलल डाला । बेमन से रिसीवर उठाया । सामने से आवाज आई- "मै इसरो से रजनीकांत सुब्रह्मन्यम बोल रहा हू । आप की काबिलियत को देखकर आप को चाँद पर जाने वाले दल मे सम्मिलित किया गया है।मुझे उम्मीद है कि आप यह पेशकश नही ठुकराएगे ।" मेरी खुशी का ठिकाना न रहा ।मानो मुझे पंख लग गये हो। मैने

कहा - "आप की आज्ञा सिरोधार्य है।"

दूसरे दिन से ही तैयारी प्रारंभ कर दी। रिश्तेदरो तथा मित्रो का ताँता लग गया । कुछ लोग तो इस लिए आते थे कि शायद मै लौटू या न लौटू।

देर रात तक यही बाते चलती रहती थी । देखते ही देखते पंद्रह दिन कैसे बीत गये पता ही न चला ।अंत मे वह स्वर्णिम दिवस आ गया जिस दिन हमे प्रस्थान करना था । अंत मे दिन के दो बजकर पैतालिस मिनट पर हमारा यान अपनी ऐतिहासिक यात्रा पर निकल गया ।हमारी खुशी का ठिकाना नही था ।

यान के प्रस्थान के थोडी देर बाद ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे कलेजा मुँह को आ गया । मि- सुब्रह्मन्यम ने हमे बताया कि यात्रा के प्रथम चरण मे थोडे समय तक ऐसी तकलीफ होगी बाद मे सब कुछ सहज हो जाएगा ।डाँ पांडेय जो हमारे पुराने मित्र भी है , ने बयाया कि यहाँ हमारा जिस प्रकार का खान पान है उससे हमे किसी प्रकार की समस्या नही हो सकती । वैसे भी हमे चिन्ता करने की आवश्यकता नही है क्योकि यह हमारा इतना महत्त्वपूर्ण मिशन हैकि हमे सोचने का समय ही नही मिलेगा । अब तक हमारी यात्रा का पहला चरण बीत गया था ।हमारी बात पृथ्वी के वैज्ञानिको से हुई ।अब हम वातावरण को पार कर चुके थे ।यह हमे तब मालूम हुआ जब हमारे पाव उखडने लगे, हमारा भार कम होने लगा ।हम अपने यान के अंदर स्थिर नही थे, बल्कि उड सकते थे। मै सोच रहा था काश ! हम जमीन पर भी ऐसे ही उड पाते । बरबस ही मन पृथ्वी पर पहुँच गया ।मन जमीन पर मित्रो तथा संबंधियो के साथ घूमने लगा।

मन तरंगित हो रहा था ।अचानक आवाज कानो मे पडी ।वातावरण की अनुपस्थिति के कारण हम बिना इयर फोन के बात कर नही सकते थे।अमिताभ जी ने मेरा ध्यान आकर्षित किया ।मेरा ध्यान टूट गया ।मेरा मन पृथ्वी से चंद्रयान मे वापस आ गया । हमने अपनी खुराक लिया ।हम खुराक मे टैबलेट तथा एनर्जी युक्त पेयपदार्थ लिए । आराम करने के लिए आराम कुर्सी से पट्टा बाँध लिया। अर्धनिद्रा मे आराम कर रहा था । अचानक कान मे हार्न सा बजा ।हडबडा कर मै बैठ गया ।

हमारा यान चंद्र पर उतरने वाला था ।यान चंद्र की परिक्रमा करने लगा । हमारे सभी साथी यान के पैनल पर टकटकी लगाये थे । हमारा यान पैसठ अंश के कोणपर उतरने लगा । यान का एक हिस्सा चंद्रकी परिक्रमा करता रहा । दूसरा चंद्र की तरफ बढने लगा । थोडी देर बाद हमारा यान चंद्र की सतह पर था । सबसे पहले डाँ- सुब्रह्मण्यम ने अपना दाँया पैर रखा । जैसे ही उन्होने अपना बाँया पैर रखा,उनका पैर पाँच छः कदम दूर पडा । इससे ज्ञात हुआ कि चंद्र पर गुरूत्व बल पृथ्वी की अपेक्षा कम है । हमारे दो साथी चाँद की परिक्रमा कर रहे थे ,बाकी लोग अब चाँद की सतह पर थे ।यह हमारे लिए बहुत गौरव का क्षण था । सबसे पहले हमने चंद्र की सतह का फोटोग्राफ लिया ।चंद्रमा का सतह उबड-खाबड है। कही गहरे गड्ढे तो कही ऊँचे पहाड है । चंद्रतल पर चलना बडा जोखिम भरा काम है । कदम यहाँ रखो तो वहाँ पडता है । भारतीय समय के अनुशार हमारा यान पाँच बजकर बीस पहुचा था । दो धंटे यूँ ही बीत गए । सुबह का समय था , तापमान शून्य से बहुत नीचे था पर स्पेश सूट के कारण हमेठंड नही लग रही थी,बरना हम वही सदा के लिए बरफ बन जम जाते । अब हम वहाँ विभिन्न सैपल इकट्ठा करना पारंभ किया ।हमने कई जगह से मिट्टी के अलग - अलग नमने इकट्ठा किया ।वहाँ पर स्वचालित यंत्र कैमरे तथा रोबोट स्थापित किए ।

शाम का समय हो चुका था ।दिन की भयंकर गरमी ढलते सूरज के साथ तेजी से कम होने लगी ।हम लोगो को तापमान का ज्ञान यंत्रो द्वारा ही भो रहा था । रात का दश बज रहे होगे, हमे आकाश मे तश्तरी नुमा कोई चीज उडती हुई दिखाई दी। वह हमारी तरफ ही बढ रही थी परंतु थोडी देर बाद उसकी दिशा बदल गई और वह दूसरी तरफ उड गयी ।हम उसकी तस्वीर लेना नही भूले । शायद यह किसी देश द्वरा रखा हुआ यंत्र रहा हो । सुबह से लगातार काम मे ही लगे होने कारण हम लोग बुरी तरह थक चुके थे । भोजनादि लेने के बाद अंब हम तरोताजा होकर अपने यान के पास पहुचे । यान का निरिक्षण कार्य पारंभ कर दिया गया । निरिक्षण कार्य मे दो घंटे का समय लगा ।यान का एक हिस्सा चाँद का चक्कर लगा रहा था । अब तक हमारा मिशन सफल रहा ।

हमने चंद्रतल पर अपना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया। साईबाबा, दुर्गाजी, तथा बजरंगबली की तस्वीरे भी रखा ।पूरे चौबीस घंटे बाद यान वापस उडान भरने के लिए तैयार था ।हम लोग यान मे सवार हो गए । यान के ऊपरी हिस्से के साथ परिक्रमा करता भाग आकर जुड गया । यान विजली की गति से उड रहा था । अब हमारी उत्सुकता बढने लगी । हम पृथ्वी पर पहुँचने के लिए उतावले हो रहे थे । लंबी थकान के बाद हम राहत महसूस कर रहे थे ।हम गहरी नीद मे सो गए । हमे एक ही चिन्ता सता रही थी कि हम सकुशल धरती पर पहुँच जाए । अंत मे वह शुभ दिन आ ही गया जिसकी हमे प्रतिक्षा थी ।हमारा यान पृथ्वी की कक्षा मे पहुँच चुका था ।

शाम सात बजे हमारा यान श्री हरिकोटा के रिसर्च सेंटर पर उतरा ।हमारे स्वागत के लिए विशाल जनमेदनी उपस्थित थी । हमारा भब्य स्वागत किया गया । यह यात्रा हमारे जीवन की विस्मरणीय यात्रा है ।

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