यदि मैं डॉक्टर होती निबंध
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मैं यदि डॉक्टर होता तो मरीज़ो के स्वास्थ्य और इलाज़ को प्राथमिकता देता। मैं अपने निजी क्लिनिक को साफ़ सुथरा रखता। अपने कमरे में ऐसे कुर्सियां और बेड का इंतज़ाम करता, जिससे मरीज़ो को किसी भी प्रकार की तकलीफ ना हो।
मैं मरीज़ो से नम्रतापूर्वक बातें करता और मरीज़ो की परेशानी को गहराई से समझता। जो भी ज़रूरत है मरीज़ो को उसी के अनुसार उन्हें ब्लड इत्यादि टेस्ट करने के लिए कहता। मैं मरीज़ो के हर कथन को ध्यानपूर्वक सुनता, ना कि आजकल के कुछ डॉक्टरों की तरह, जो थोड़ा बहुत सुनकर पर्चे पर दवाई लिखकर मरीज़ो को थमा देते है।
मैं मरीज़ो की सही तरीके से जांच करता और फिर उन्हें ज़रूरत की दवाई और प्रत्येक दिन उन्हें खाने में क्या सेवन करना चाहिए इसके बारे उनको अच्छे से समझा देता।
मरीज़ो की आपातकालीन स्थिति में मैं सर्वप्रथम उस मरीज़ को प्राथमिकता देता। चाहे कितनी ही देर रात को मुझे रोगियों के इमरजेंसी कॉल्स आये, मैं हमेशा उनके सेवा में हाज़िर हो जाता।
रोगी का परीक्षण करते हुए रिश्तेदारों का हस्तशेप मैं सहन नहीं करता। मैं रिश्तेदारों की भावनाओ को समझता हूँ, मगर रोगियों की जांच के समय, मैं कोई हस्तक्षेप नहीं चाहता क्योकि इससे कहीं ना कहीं जांच में बाधा पड़ती है।
अस्पताल में कार्यरत होने के बावजूद कभी रोगी को घर पर जाकर देखना पड़े तो मैं उसके लिए हमेशा तैयार रहूंगा। आजकल कुछ डॉक्टर रोगी की बीमारी को भली भाँती जानते हुए भी उसे बड़ी बीमारी घोषित कर देते है। ऐसा वे इसलिए करते है ताकि उन्हें अत्यधिक पैसा मिले।
यह सरासर गलत है। एक भला डॉक्टर कभी ऐसा नहीं करेगा। यदि मैं भी डॉक्टर होता तो रोगी को उसकी सही बीमारी और लक्षणों के विषय में सारी जानकारी देता। किसी भी लालच में आकर रोगी को गलत सलाह देना और गलत बीमारी की घोषणा एक बड़ा अपराध है।
यदि मैं डॉक्टर होता, तो ऐसा कार्य हरगिज़ नहीं करता। मरीज़ बहुत विश्वास के साथ डॉक्टरों के समक्ष अपना इलाज़ करवाने के लिए आते है। उसका मान रखना डॉक्टरों की ज़िम्मेदारी है।
रक्तचाप का ऊपर नीचे होना आज कल आम रोग है। कुछ डॉक्टर ब्लड प्रेशर के आकलन के पश्चात मरीज़ो को ठीक प्रकार से बताते नहीं है और भ्रम की स्थिति उतपन्न कर देते है। यदि मैं डॉक्टर होता तो कभी ऐसा नहीं करता और मरीज़ो को सही ब्लड प्रेशर की रीडिंग बताकर मरीज़ के संदेह को दूर कर देता।
आजकल कुछ डॉक्टर बड़े ही चालाक होते है, अगर मरीज़ो की बीमारी उन्हें समझ ना आये तो हज़ार टेस्ट पर्चे पर लिखकर देते है। इसके लिए मरीज़ो को परीक्षण केंद्र में ब्लड टेस्ट, पेशाब टेस्ट इत्यादि करवाने पड़ते है। इससे मरीज़ो का पैसा और समय दोनों व्यर्थ होता है।
कुछ डॉक्टर कमिशन पाने के लिए और ज़रूरत ना पड़ने पर भी लंबा चौड़ा टेस्ट लिस्ट मरीज़ के हाथ थमा देते है। यदि मैं डॉक्टर होता तो कभी भी मरीज़ को गलत राह नहीं दिखाता, बल्कि उसकी असली परेशानी को समझकर उसका सही टेस्ट लिखकर देता। किसी भी अवस्था में उसे गुमराह नहीं होने देता।
डॉक्टर का परम कर्तव्य है कि वह मरीज़ो से सच कहे। मरीज़ो से झूठ बोलना डॉक्टरों के पेशे के खिलाफ होता है। यदि मैं डॉक्टर होता तो गरीबो को मुफ्त चिकित्सा प्रदान करता और उन्हें गाँव जाकर सही इलाज़ प्रदान करने के लिए एक मेडिकल टीम बनाता।
कई सरकारी अस्पतालों में पैसे कम लिए जाते है, लेकिन कहीं जगहों पर जैसे कोरोना महामारी के समय मरीज़ो का भली भाँती देखभाल नहीं किया जाता। जिसकी वजह से बहुत लोगो ने अपनी जान गवाई। यदि मैं डॉक्टर होता तो कभी ऐसी स्थिति नहीं आने देता।
कुछ डॉक्टर महंगाई को कारण बताकर, अपनी फीस बढ़ा लेते है। इससे उनके लालची होने का साफ़ पता चलता है। यदि मैं डॉक्टर होता तो ऐसा अन्याय कभी नहीं होने देता। एक आम आदमी जितना फीस देने का समार्थ्य रखता है, मैं उतना ही फीस लेता। इन अवैध तरीको से मैं कभी भी धन नहीं कमाता।
यदि मैं किसी भी मरीज़ की बीमारी को समझ नहीं पा रहा हूँ, तो मैं मरीज़ को किसी दूसरे डॉक्टर से इलाज़ करवाने की राय देता। डॉक्टरी का पेशा बड़ा ही पवित्र होता है, ऐसे कई डॉक्टर है जो बिना फीस लिए निस्स्वार्थ रूप से अपना फ़र्ज़ निभाते है।