यदि मैं इंस्पेक्टर होता पर अनुच्छेद|
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मैं विश्वास रखता हूँ कि अगर पुलिस ईमानदारी से अपना काम करे तो वे समुचित तरीके से समाज की सेवा कर सकते हैं। पुलिस व्यवस्था में अनेक सुधार करके पुलिस व्यवस्था को सबसे अधिक बहतरीन बनाया जा सकता है।
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यदि मैं पुलिस होता
आज के युग में एक पुलिस-अधिकारी होना बहुत बड़ी बात समझी जाती है । वह इसलिए नहीं कि पुलिस-अधिकारी बने व्यक्ति के पास कई प्रकार के अधिकार होते हैं । उन अधिकारों का उपयोग कर के वह जीवन और समाज को सुरक्षा तो प्रदान कर ही सकता है, समाज- सेवा के अनेकविध कार्य भी सम्पादित कर-करा सकता है । वह हर प्रकार की अराजकता और अराजक तत्त्वों पर अंकुश लगाने में सफल हो सकता या हो जाया करता है ।
मैं यदि पुलिस-अधिकारी होता; तो इस हीनता-ग्रंथि को, इस प्रवृत्ति को जड़-मूल से ही उखाड़ फेंकता । पुलिस में आने वाले प्रत्येक छोटे-बडे व्यक्ति को यह व्यावहारिक रूप से अच्छी तरह समझने का प्रयत्न करता कि वर्दी पहन लेने वाला व्यक्ति न तो विशिष्ट हो जाता है और न अन्य सामाजिक प्राणियों से अलग ही । पुलिस में होना उसी प्रकार की जन-सेवा का कार्य है जैसा कि किसी अन्य महकमे का हुआ करता है । कहने का तात्पर्य यह है कि मैं पुलिस अधिकारी बन कर उस समूची मानसिकता को बदलने का प्रयास करता कि जिसके कारण हमारे स्वतंत्र और जनंतत्री देश की पुलिस स्वतंत्र और सभ्य, सुसंस्कृत देशों जैसी नहीं लगती । वर्तमान मानसिकता-परिवर्तन बहुत जरूरी है ।