यदि मैं प्रधानमंत्री होता है इस पर विच्छेद
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यदि मैं प्रधानमंत्री होता-अरे ! यह मैं क्या सोचने लगा । प्रधानमंत्री कितना भारी शब्द है यह, जिसे सुनते ही एक ओर तो कई तरह के दायित्वों का अहसास होता है जबकि दूसरी ओर स्वयं ही एक अनजाने गर्व से उठ कर तनने भी लगता है ।
भारत जैसे महान लोकतंत्र का प्रधानमंत्री बनना वास्तव में बहुत बड़े गर्व और गौरव की बात है, इस तथ्य से भला कौन इन्कार कर सकता है । प्रधानमंत्री बनने के लिए लम्बे और त्यापक जीवन अनुभवों का, राजनीतिक कार्यों और गतिविधियों का प्रत्यक्ष उनुभव रहना बहुत ही आवश्यक हुआ करता है ।
प्रधानमंत्री बनने के लिए जनकार्या और सेवाओं की पृष्ठभूमि रहना भी जरूरी है और इस प्रकार के व्यक्ति का अपना जीवन भी त्याग-तपस्या का आदर्श उदाहरण होना चाहिए । प्रधानमंत्री बनने के लिए व्यक्ति को चुस्त-चालाक, कूटनीतिइा, कुशल और दबाव एवं प्रहार कर सकने योग्य वाला होना भी बहुत आवश्यक माना जाता है ।
निश्चय ही मेरे पास येसारी योग्यताएँ नहीं हैं, फिर भो अक्सर मेरे मन-मस्तिष्क को यह बात मथती रहा करती है । यदि मैं प्रधानमत्री होता, तो ? यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो, सबसे पहले मेरा कर्तव्य स्वतंत्र भारत के नागरिकों के लिए विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए, पूरी सख्ती और निष्ठुरता से काम लेकर एक राष्ट्रीय चरित्र निर्माण करने वाली शिक्षा एवं उपायों पर बल देता
छोटी-बडी विकास-योजनाएँ आरम्भ करने से पहले यदि हमारे अभी तक के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान देते और उसके बाद विकास-योजनाये चालू करते तो वास्तव में उनका लाभ आस आदमी तक भी पहुच पाता आज हमारी योजनायें एवं सभी सरकारी-अर्द्धसरकारी विभाग आकण्ठ निठल्लेपन और भ्रष्टाचार में डूब कर रह गए हैं एक राष्ट्रीय चरित्र होने पर इस प्रकार की सम्भावनाएँ स्वत: ही समाप्त हो जातीं । इस कारण यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो प्राथमिक आधार पर यही कार्य करता ।
आज स्वतंत्र भारत में संविधान लागू है, उसमें बुनियादी कमी यह है कि वह देश का अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक्, अनुसूचित जाति, जनजाति आदि के खानों में बाटने वाला तो है, उसने प्रत्येक के लिए कानून विधान भी अलग-अलग बना रखे हैं जबकि नारा समता और समानता का लगाया जाता है ।यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो संविधान में रह गई इस तरह की कमियों को दूर करवा सभी के लिए एक शब्द ‘भारतीय’ और समान सविधान कानून लागू करवाता कि वे राष्ट्रीय संसाधनों से ही पूरी हो सकें । उनके लिए विदेशी धन एवं सहायता का मोहताज रहकर राष्ट्र की आन-बान को गिरवी न रखना पड़ता ।
दबावों में आकर इस तरह की आर्थिक नीतियाँ या अन्य योजनायें लागू न करने देना कि जो राष्ट्रीय स्वाभिमान के विपरीत तो पड़ती ही हैं निकट भविष्य मे कई प्रकार की आर्थिक एवं सास्कृतिक हानिया भी पहुचाने वाली हैं ।
स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी एक राष्ट्रभाषा, अपनी एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक हितों को सामने रखकर बनाई गई शिक्षा नीति हुआ करती है । स्वतंत्रता प्राप्त किए आधी शताब्दी बीत जाने पर भी भारत इन दो महत्वपूर्ण कार्यों को सही परिप्रेक्ष्य में महत्व नहीं दे पाता ।
यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो ऐसी शिक्षा नीति तो तत्परता से बनवाने का प्रयास करता ही, राष्ट्रभाषा की समस्या भी प्राथमिक स्तर पर हल करने, अपनी एक राष्ट्रभाषा घोषित करता ही, राष्ट्रभाषा की समस्या भी प्राथमिक स्तर पर हल करने अपनी एक राष्ट्रभाषा घोषित करने का प्रयास करता ।यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो भ्रष्टाचार का राष्ट्रीयकरण कभी नहीं होने देता । किसी भी व्यक्ति का भ्रष्टाचार सामने आने पर उसकी सभी तरह की चल-अचल सम्पत्ति को छीनकर राष्ट्रीय सम्पति घोषित करता । इसी तरह-तरह के अलगाववादी तत्वों को न तो उभरने देता और उभरने पर उनके सिर सख्ती से कुचल डालता ।
राष्ट्रीय हितों, एकता और समानता की रक्षा, व्यक्ति के मान-सम्मान की रक्षा और नारी जाति के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार का दमन मैं हर संभव उपाय से करवाता । प्रधानमंत्री की कुर्सी चली जाती, पर मैं वोटों को पाने और कुर्सी बचाने का खेल न खेलता, राष्ट्ररेत्थान एवं राष्ट्र के मान-सम्मान की रक्षा के लिए वह सब करता जो आम जनता चाहती और जो करना परमावश्यक भी है ।
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