यदि मैं पलिुलिस अधिकारी होती तो ।
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यदि मैं पुलिस अधिकारी होता
कुछ लोग पुलिस विभाग की नौकरी करना इसलिए पसंद करते हैं, ताकि वे समाज में शान से जीवन व्यतीत कर सकें । आम आदमी पुलिस की वर्दी से डरता है, इसलिए पुलिस विभाग में नौकरी करके कुछ लोग अपनी मनमानी करते हैं ।
वास्तव में पुलिस विभाग का कर्तव्य समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना और समाज के अपराधियों को पकड़कर न्यायाधीश के समुख प्रस्तुत करना है, ताकि उन्हें सजा दी जा सके । एक पुलिस अधिकारी के कन्धों पर समाज की रक्षा की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है । मैं भी एक पुलिस अधिकारी के रूप में समाज के शत्रुओं से लड़ना चाहता हूँ ।
यदि मैं पुलिस अधिकारी होता तो सर्वप्रथम पुलिस अधिकारी के अपने कर्तव्य पर विचार करता कि मुझे सदैव जान हथेली पर लेकर समाज की रक्षा करनी है । आज पुलिस विभाग रक्षक के स्थान पर भक्षक के रूप में बदनाम है ।
आम आदमी के मन में पुलिस का भय एवं आतंक बैठा हुआ है । ऐसा माना जाता है कि रिश्वत लिए बिना पुलिस कोई काम नहीं करती । वह अपराधियों का साथ देती है और उसी की मिलीभगत से समाज में अपराध होते हैं ।
मैं यदि पुलिस अधिकारी होता तो आम आदमी के मन से पुलिस का भय निकालने का यथासम्भव प्रयास करता । मैं अपने अधीन पुलिसकर्मियों को सख्त आदेश देता कि वे आम आदमी के मित्र बनकर जनता की सेवा करें उन्हें इसी कार्य के लिए सरकार वेतन देती है ।
आम आदमी के साथ दुर्व्यवहार करने वाले पुलिसकर्मियों के विरुद्ध मैं सख्त कार्रवाई करता, ताकि भविष्य में वे ऐसी गलती दुबारा नहीं करते । अपराधियों का साथ देने वाले पुलिसकर्मियों को मैं स्वयं गिरफ्तार करके न्यायाधीश से सजा दिलवाता ।
यदि मुझे अपने अधीन पुलिसकर्मियों के विरुद्ध रिश्वत लेने की शिकायत मिलती तो मैं उन्हें तुरन्त नौकरी से बर्खास्त कर देता । समाज के अपराधियों को सजा दिलाने से पहले मैं अपने पुलिस विभाग के निकम्मे भ्रष्ट, कर्तव्यछृ पुलिसकर्मियों को सुधारने का प्रयत्न करता ।
मैं यदि पुलिस अधिकारी होता तो आम आदमी के मन से पुलिस का भय निकालने के लिए मैं अपने क्षेत्र की जनता से स्वयं जाकर मिलता । मैं स्वयं आम आदमी से उसकी समस्याओं को जानने की कोशिश करता । और लोगों की समस्याओं के निवारण के लिए यथासम्भव प्रयत्न करता ।
स्थानीय नागरिकों के सहयोग से मैं प्रत्येक मुहल्ले में ऐसी समिति गठित करता, जो मुज्ञे भ्रष्ट पुलिसकर्मियों और स्थानीय अपराधियों की सूचना देती । समिति की सूचना पर मैं समुचित कार्रवाई करता । सजा से पहले मैं भ्रष्ट पुलिसकर्मियों तथा अपराधियों को सुधरने का एक अवसर अवश्य देता ।
परन्तु शातिर अपराधियों के विरुद्ध मैं सख्त कार्रवाई करता । मैं यदि पुलिस अधिकारी होता तो महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों के विरुद्ध मैं सख्त कदम उठाता । प्राय: महिलाओं के साथ उनके परिवार के लोग ही दुर्व्यवहार करते हैं ।
ऐसे लोगों को मैं क्षमा नहीं करता । महिलाओं से मैं निवेदन करता कि वे निडर होकर अपनी शिकायत थाने में दर्ज कराएँ । इस सम्बन्ध में मैं अपने अधीन पुलिसकर्मियों को सख्त निर्देश देता कि महिलाओं की शिकायतों पर वे विशेष ध्यान दें ।
महिलाओं पर अत्याचार करने वाले अपराधियों को मैं सुधरने का अवसर नहीं देता । जो महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकते, वे समाज के शत्रु हैं । समाज के ऐसे वहशी दरिंदों को मैं कानून से सख्त सजा दिलवाता । यदि मैं पुलिस अधिकारी होता तो किसी राजनेता के दबाव में अपराधियों को माफ नहीं करता ।
राजनेताओं के दबाव में प्राय: अपराधी छूट जाते हैं और समाज में पुन: अपराध करते हैं । मैं अपराधियों का साथ देने वाले राजनेताओं के विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई करता और उन्हें न्यायाधीश के समुख प्रस्तुत करता ।
राजनेताओं से शत्रुता करके पुलिस की नौकरी करना आसान नहीं है, परन्तु मैं निडरता से भ्रष्ट राजनेताओं का मुकाबला करता और सहायता के लिए कानून का दरवाजा खटखटाता । ईमानदारी से पुलिस की नौकरी करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।
एक ओर अपराधियों, दूसरी और राजनेताओं से मुकाबला करना पड़ता है । इस लड़ाई में किसी भी क्षण जान जाने का खतरा बना रहता है परन्तु यदि पुलिस अधिकारी होता, तो यह कभी नहीं भूलता कि जान की बाजी लगाकर भी मुझे अपने कर्तव्य का पालन करना है ।
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