'यदि मैं शिक्षा मंत्री होता' पर निबंध (हिंदी)
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यदि मैं शिक्षामंत्री होता हिंदी निबंध (Essay on If I were the Education Minister in Hindi)
सस्ती और उपयोगी शिक्षा:
यदि मैं शिक्षामंत्री होता तो मेरा सबसे पहला कार्य होता-आज की शिक्षा को अधिक से अधिक उपयोगी और कम से कम खर्चीली बनाना। आजकल एम. ए. और एम. एससी. जैसी डिग्रियाँ प्राप्त करने के बाद भी विद्यार्थियों को नौकरी के लिए मारा-मारा फिरना पड़ता है या बेकार बैठे रहना पड़ता है। कभी-कभी उन्हें अपनी आजीविका के लिए ऐसे काम भी करने पड़ते हैं, जिनसे उनकी शिक्षा का कोई उपयोगी नहीं होता। परिणामस्वरूप उनका ज्ञान धीरे-धीरे मिट्टी में मिल जाता है और वर्षों की तपस्या पर पानी फिर जाता है। मैं ऐसा कभी नहीं होने देता। मैं टेक्निकल और औद्योगिक शिक्षा पर अधिक ध्यान देता । हस्तकला, चित्रकला, संगीत, फोटोग्राफी तथा बागवानी को भी मैं शिक्षा मे स्थान देता। गरीब प्रतिभाशाली छात्रों के लिए मैं छात्रवृत्तियों की व्यवस्था करता । मैं शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने का आयोजन करता।
उचित माध्यम:
मैं शिक्षा के माध्यम के लिए मातृभाषा को ही उपयुक्त समझता हूँ । अतः यदि मैं शिक्षामंत्री होता तो सभी पाठ्यपुस्तकें मातृभाषा में ही तैयार करवाता। मैं विद्वानों द्वारा विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान तथा इंजिनियरींग आदि की पुस्तकें मातृभाषा में लिखवाता अथवा दूसरी भाषाओं की पुस्तकों के सरल सुबोध अनुवाद कराकर उन्हें प्रकाशित करवाता । मातृभाषा के साथ ही मैं राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को तथा आंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी को उचित स्थान देता।
पाठ्यपुस्तक एवं परीक्षा-प्रणाली में सुधार:
मैं पाठ्यपुस्तकों में से ऐसे विषय रखवाता, जो ज्ञानप्रद, रोचक और राष्ट्रीय भावनाओं का विकास करनेवाले हों, जिनके अध्ययन से विद्यार्थी भारतीय संस्कृति को ठीक तरह से समझ सकें। पुस्तकों का मूल्य कम से कम रखता, जिससे गरीब विद्यार्थी भी उन्हें आसानी से खरीद सकें। विद्यार्थी को परीक्षा में सफलता का प्रमाणपत्र उसकी वार्षिक प्रगति, स्वास्थ्य, चरित्र तथा सामान्य ज्ञान के आधार पर दिया जाता।
अन्य सुधार:
मैं स्कूलों की तरह कॉलेजों में भी गणवेश पहनना अनिवार्य कर देता । इससे न केवल समता पैदा होती, किंतु आज की-सी फैशनपरस्ती पर भी अंकुश रहता। लड़कियों के पाठ्यक्रम में गृहविज्ञान, शिशुपालन तथा अन्य स्त्री-उपयोगी विषयों को अधिक महत्त्व देता। स्कूलों में प्रवेश के लिए ‘डिपॉझिट’ या ‘डोनेशन’ लेने की प्रथा को सख्ती से बंद करवाता।
मेरा आदर्श:
इस प्रकार शिक्षामंत्री बनने पर मैं वर्तमान शिक्षाप्रणाली को ऐसे रूप में ढालता, जिससे देश को अच्छे नागरिक, अच्छे अध्यापक, अच्छे नेता, कुशल डॉक्टर, चतुर गृहिणियाँ और सच्चे सपूत मिल पाते।
क्या मैं अपने जीवन में इन अभिलाषाओं को मूर्त रूप दे पाऊँगा?