यदि मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री होता 100 शब्दों में अनुच्छेद
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लगभग हर आदमी सपने देखता है। कोई सपने में करोड़पति बनना चाहता है, कोई करोड़पति बनना चाहता है, कोई डॉक्टर बनना चाहता है, कोई इंजीनियर, कोई प्रशासक तो कोई मंत्री।
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यदि मैं मुख्यमंत्री होता तो सबसे पहले अपने राज्य के लिए जान को न्योछावर कर देता I जान न्योछावर करने का अर्थ ये है कि अपने देश के जितने किसान भाई हैं उनके पास अगर ज़मीन है, तो हल बैल या ट्रेक्टर का इंतज़ाम नहीं है I मैं ऐसे किसानों के लिए इन सुविधाओं को मुहैया कराता साथ में बीज जो अच्छी नस्ल का हो उपलब्ध कराता I
किसी को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता किसान हमारे अन्न दाता हैं जब तक खेतों में हरियाली नहीं आएगी तब तक पूरेदेश में चूल्हा नहीं जल पायेगा I जो बाढ़ पीड़ित इलाके हैं उनके लिए बारिश होने से पहले बाढ़ से राहत कैसे हो इसका इंतज़ाम करता I जब घर द्वार माल मवेशी सब बहने लगते हैं ,तब मंत्रियों का ध्यान जाता है I कहीं भी सुखाड घोषित ना हो नहीं तो ज्यादा दिन दूर नहीं प्रलय आ जाएगा Iकिसानों के बच्चों की भी शिक्षा का प्रबंध करवाता I
दूसरा ध्यान मैं इस पर देता कि चिकित्सा का प्रबंध हर राज्य में गाँव से सटा हो और इमानदार डॉक्टर हो जो तुरंत महामारी तक को रोक पाए I पैसे के चलते कोई इलाज के बिना मृत्यु को न प्राप्त हो I इसके बाद मैं ग्रामीण विकास के लिए उतना ही सजग रहता जितना लोग स्मार्ट सिटी बनाने में पैसे को पानी की तरह बहाते हैं I
जिस प्रकार आजादी के तुरंत बाद के नेता अपने वेतन का आधा हिस्सा भी देश के नाम दे देते थे Iमैं अपने वेतन के उतने हिस्से रखता जितनी मूल आवश्यकता है यहाँ तो मंत्रिगण पूरे राज्य की पूरी संपत्ति ही डकार जाते हैं Iमैं बस यही चाहता हूँ :
"साईं इतना दीजिये ,जामे कुटुम समाये I
मैं भी भूखा न रहूँ साधू भी न भूखा जाए "II
राज्य उन्नत्ति करेगा तो देश की उन्नत्ति स्वयं होगी I