यदि नाक ना होती तो आदमी का जीवन कैसा होता
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सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अगर नाक न होती' नामक पाठ से अवतरित हैं। इसके लेखक 'गोपाल बाबू शर्मा हैं। ... व्याख्या-लेखक कहता है कि आज आदमी अपनी इज्जत रखने की चिन्ता में बड़ी कठिनाई से जीवन जी रहा है। अपनी नाक रखने की (इज्जत रखने की) चिन्ता लगी रहती है, अतः वह मुकदमेबाजी में धन खर्च कर देता है और नष्ट हो जाता है
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